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________________ ( १०७ ) लगता है कि सगे सम्बन्धियों से सुख मिलता है; पर सचमुच में तो उससे कष्ट क्लेश तथा आपत्ति ही आते हैं । सगों के लिये ही कितने ही कष्टमय धन्धे या व्यवहार आदि करना पड़ता है। उनके गुस्से होने पर, बीमार पड़ने पर, या आपत्ति में आने पर अत्यन्त दुःख होता है। तो ऐसे कुटुम्बियों से मोह करना किस बात का ? किस लिये ? __वैसे ही धन अशांति उत्पन्न करता है। धन कमाने के लिए, कमाये हुए को संभालने के लिए और मित-व्ययता से भगने के लिए मन को कितनी ही चिंता करनी पड़ती है। धन के कारण ही मन को अशांति रहती है। ऐसे धन पर क्या अन्ध-राग करने लायक है ? इसका भान हो तो उससे विरक्त होकर उसका सदुपयोग और सर्व स्याग भी हो जाय । दुनिया की सभी चीज वस्तुए माल मेवा हाटहवेली आदि सभी धन है और वह सब अशांति के लिए होता है । यों जगत का स्वभाव पहचान लिया जाय तो उस पर वैराग्य जगमगाहट करने लगे। २. निस्संगताः जगत का स्वभाव जानने पर भी यह संभव है किसी कर्म के उदय से परवशता के कारण कहीं विषयजन्य स्नेह आसक्ति हो जाय, तब यदि उसे दबाया नहीं जाय, तो आगे धर्मध्यान नहीं हो सकता। अथवा ध्यान का प्रारम्भ हुआ हो तो इस आसक्ति के जागने पर ध्यान रुक जाय । अतः जगत-स्वभाव को अच्छी तरह जानने के अलावा भी जगत के प्रति निस्संगभाव खड़ा करना चाहिये, जिससे बाद में उसकी किसी चीज के प्रति आसक्ति उठने ही नहीं पावे । निस्संगभाव खड़ा करने के लिए यह सोचना चाहिये कि(१) संसार में जन्म जन्म में खिसकते हए आत्मा ने एक जन्म
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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