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ॐ णमो समणस्स भगवओ महावीरस्स। श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी।
सर्वज्ञ सर्वदर्शी विभु, बुद्धिविवर्द्धक जेह । चोवीसी जिनने नमुं, आणी मनमें नेह ॥१॥ ज्ञाननयन दाता सदा, गुण गिरुवा गुरुदेव । तस पदपंकज प्रणमतां, बढ़े बुद्धि स्वयमेव ॥ २॥ लौकिकभाषा छन्दमें, भविजन के हितकार । पंचसप्ततिशतस्थाननु, सुगम रचुं अधिकार ॥३॥ १ भवसंख्या, श्रीऋषभदेवना तेर भवऋषभ भव तेरस कह्या, धरिये हृदय मझार । धनसार्थप पहले भवे, बीजे युगल सुधार ॥१॥ सुर तीजे महबल तुरिय, ललितांग पण जोय । वज्रजंघ छ8 मिथुन, आठमें सोहम होय ॥२॥ वैद्यपुत्र नवम अच्युत, चक्री ग्यारम जाण । सर्वार्थसिद्ध विमान में, तेरम ऋषभ प्रमाण ॥३॥