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________________ ७२ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. श्रीचन्द्रप्रभस्वामीना सात भव- श्रीवर्म्मराजा प्रथम, सोहम बीजे देव । अजितसेनचक्री थया, चोथे अच्युत सेव [ प्रथम 118 11 पद्मराज पंचम भवे, षष्ठ विजयंत जान । सातमे चन्द्रप्रभ थया, ओपे गुणि गण थान श्रीशांतिनाथप्रभुना बार भव श्रीषेण पहले भवे, बीजे युगल सुजाण । देव तीजे अमिततेज, तुरिय थया गुणखाण ॥ ६॥ प्राणत पंचम बलहरी, छट्ठे अच्युत सात । वज्रायुध भव आठमे, नवम गेविज जात 114 11 ॥७॥ मेघरथ दशमा भवे, कपोत रक्षक जेह | सर्वार्थसिद्ध विमानसुं, बारम शांति सुलेह ॥ ८ ॥ श्रीमुनिसुव्रतस्वामीना नव भव शिवकेतु पहले भवे, बीजे सोहम थाय । कुबेरदत्त तीजे भवे, तुरिय स्वर्ग - तिय जाय ॥ ९ ॥ वज्रकुंडल भव पंचमे, छट्ठे ब्रह्म विचार । श्रीवर्मनृपति सातमे, अपराजित अड धार ॥ १० ॥ मुनिसुव्रत नवमे थया, तीर्थंकर जयकार । वीसम जिनपति वदतां नाशे पाप प्रचार ॥ ११ ॥
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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