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________________ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. उल्लास ] १६८ जिनेश्वरोनो परस्पर अन्तर १३९ एक जिनना जन्म थकी, बीजा जन्मे जाण । एक जन्मथी दूसरा, मुक्त थया जिणभाण || ४७५ ।। एकना मोक्षथी दूसरा, जन्म मोक्षथी मुक्त | चार भेद अंतरतणा, चोथो इहाँ छे उक्त ॥ ४७६ ॥ पचास लाख कोटि वली, तीस लख कोटि होय । दश लाख नव लाख कोटी, अयरा एता जोय ||४७७ || नेउ सहस कोटि नव सहस, नव शत कोटि सुजाण । नेउ कोटि नवकोटि वली, शीतल लग ए मान ॥ ४७८ ॥ शतसागर छासठ लख, वर्ष छब्बीस हजार । इक कोटि सागर में हीन, श्रेयांसजिननुं धार ॥ ४७९॥ चोपन तीस ने नव चउ, सागर क्रमसे होय । पूणपलि ऊण तिसागरा, शान्ति लगे इम जोय || ४८० || अर्धपल्य अरु पावपल्य, कोटिसहस वर्ष हीन । कुंधु अरजिननुं निर्वाण, जाणो दिलमें चीन ॥ ४८१ ॥ एक कोटि सहस वर्ष, मल्लिनिर्वाण सुहाय । चोपन लाख वर्षां पछी, मुनिसुव्रत जिनराय ॥ ४८२ ॥ १ - ऋषभमोक्षसुं ए अंतर, गणिये इह सुखदाय | अजितादी क्रमसे गणी, धर लीजो दिल माय ॥ १ ॥
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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