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________________ १४० श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. छलाखे नाम जिनपती, पांचलाख वलि वर्ष । नेमिजिननो मानिये, निरवाण बहु प्रकर्ष पोने चोराशी सहस, वर्षनुं पार्श्व सुनाथ । अढ़ीसो वर्षे वीरजी, पाम्या शिवपुर पाथ [ पंचम ॥ ४८३ ॥ 11 868 11 १६९ तीर्थप्रसिद्ध जिनजीव जे जे तीर्थकर वारमें, तीर्थंकर परकाश । जे जीवोनो जिम थयो, नाम कहुं उल्लास ॥ ४८५ ।। मरीचि प्रमुख ऋषभेशने, सुपार्श्व शासन जाण । श्रीवर्मनृपादिक हुवा, शीतल तीर्थ वखाण ॥ ४८६ ॥ हरिषेण ने विश्वभूति, श्रीकेतु ने त्रिपृष्ठ | मरुभूति अमिततेज धन, पंच श्रेयांस श्रेष्ठ ॥ ४८७ ॥ वासुपूज्ये नंदन नन्द, शंख सिद्धारथ वर्म । मुनिसुव्रते रावण नारद, कीना सुकृत कर्म ॥ ४८८ ॥ 11869 11 कृष्ण प्रमुख नेमीशने, अंबड सत्यकी नंद | पार्श्वतीर्थ में त्रण थया, वीरतीर्थ में नंद 'श्रेणिक सुपास ने पोट्टिल, उदाइ शंख दृढायु । शतकदो सुलसा रेवती, करे बंधन जिनायु ।। ४९० ॥ १७० जिनेश्वरशासनमां रुद्रमुनि रुद्रतप अंग धारका, मुनि रुद्र इग्यार । मीमावलि ऋषमेशने, अजित जितशत्रु धार ॥ ४९१ ॥
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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