SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उल्लास ] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. अपराजित नंदी पद्म, महापद्म अरु पद्म । नलिनीगुल्म पद्मोत्तर, पद्मसेन - गुणसद्म ७७ 11 88 11 पद्मरथ दृढरथ मेघरथ, सिंहावह नर - ईश | धनपति वैश्रमण श्रीवर्म, सिद्धारथ - सुगुणीश ॥ ४५ ॥ सुप्रतिष्ठ आनंदनृप, नंदन नाम महंत | प्रथम चक्री मानिये, शेष नृपति मतिवंत ॥ ४६ ॥ ९ जिनेश्वरोना पूर्वभवना गुरु पूर्वभवे जे गुरु थया, अनुक्रम तेना नाम । वज्रसेन अरिदमन अरु, संभ्रांत ततिय साम ॥ ४७ ॥ विमलवाहन सीमन्धरा, पिहिताश्रवजी जान | अरिदमन युगन्धर तथा, सर्वजगानंद मान सस्ताघ वज्रदत्त पुनि, वज्रनाभ सर्वगुप्त । चित्ररथ विमलवाहन, घनरथ संवर सुप्त बारे अङ्ग पेला भण्या, शेषा ग्यारे अङ्ग । श्रुतरत्व इम जानिये, जिनवाणी परसङ्ग 11 86 11 1188 11 साधुसंवर वरधर्म हु, सुनंद नंद विचार | अतियश दामोदर गुरु, पोट्टिल चरम निहार ॥ ५० ॥ १० जिनेश्वरोना पूर्वभवनो श्रुत ॥ ५१ ॥
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy