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________________ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [प्रथम संभव सुपार्श्व श्रेयांस, रमणीयविजय माय । चोथा अष्टम बारमा, मंगलावतिए थाय ॥ ३५ ॥ विजयावर्ने कुंथुजिन, अनंतैरवत होय ।। सलिलावतिए मल्लिविभु, विजय पूर्वभव जोय ॥ ३६ ॥ मुनिसुव्रत नमि नेमिजिन, पार्श्व अन्तिम वीर । विमल धर्म साते प्रभू, थया भरत वड़वीर ॥३७॥ ६ जिनेश्वरोना पूर्वभवनी नगरीओवृषभ सुमति शांति सुविधी, पुंडरीकणी जान । अजित पद्म शीतल अरा, सुसीमा नयरि मान ॥ ३८॥ संभव सुपार्श्व श्रेयांस, शुभापुरी अवतार । कुंथुनाथ खड्गीपुरी, रिष्टा अनंत निहार ॥३९॥ अभिनंदनाऽष्टम बारमा, रत्नसंचया होय । भदिलपुर श्रीधर्मजिन, विमल महापुरि जोय ॥ ४० ॥ वीतशोका मल्लिजिन, कोशांबी नमि जान । मुनिसुव्रत चंपापुरी, राजगृह नेमि प्रमान ॥ ४१ ॥ अयोध्या पार्श्वप्रभु, अहिच्छत्रा जिनवीर । पूर्वभवों की नगरियाँ, समझो थइ मन थीर ॥ ४२ ॥ ७ जिनेश्वरोना पूर्वभवना नाम अने ८ राज्यवज्रनाभ पूरव भवे, शेष अनुक्रम जान । विमलवाहन विपुलबलं, महबल अतिबल मान ॥ ४३॥
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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