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________________ (२३) छोड़ कर के उन पर भी सोम दृष्टि रख उनको शांति देता है आज के समय में जगत में अपने मंतव्य को सच्चा मान दूसरों के खंडन के आक्षेप के ट्रेक्ट निकाल कर परस्पर देष वढाते हैं वो बहुत बुरा है सरकार उन्हें दंड करती है, कितावों को रद्द कर दी जाती जाती है, समय जौर धन का नाश होता है, बुद्धि का दुरुपयोग होता है, इस लिये भव्यात्माओं को ऐसे झगड़ों से हमेंशा दूर रह कर आत्महित करना चाहिये इस गुण ऊपर । सोमवसु ब्राह्मण की कथा ॥ सोमबसु ब्राह्मण को परिवार के गुजारा के लिये दुकाल में एक शुद्र का धन लेना पड़ा उससे उसे भी बड़ा पश्चाताप हुवा और उसका प्रायश्चित लेने को गुरू शोधने को चला रास्ते में एक बावा मिला उसे पूछा कि आप क्या तत्व मानते हैं. बो मठवासी बाबा बोलाकि गुरू महाराज जब मरगये तब उन के पास हम दो शिष्य थे, उस समय गुरूजीने हमें कहाथा कि मीठा खाना, सुख से सोना और लोक प्रिय होना, किन्तु हम दोनों उनसे अधिक पूछना चाहते थे किन्तु इनका देहान्त होगया जिससे हम दोनों अलग हो गये, मैं तो यहां रहता हूं और दूसरा शिष्य दूसरी जगह है, मैं यहां रह कर मंत्र, औषध से लोगों का चित प्रसन्न करता हूं, जिससे वे मीठे भोजन देते हैं, और मैं खाकर सुख से सोता हूं, सोमवम् को वो बात अच्छी न लगी जिसके गुरू के बचन में क्या परमार्थ है वो ढूंढने को उसके गुरू भाई का पता पूछा उसमें बताया और वहां से सोमवसु चला, वहां जाकर उससे पूछा उस समय कोई गृहस्थी उसे नोता देकर जीमने को बुलाने को आया था तो बो बोला कि आज हमारे यहां एक अतिथि पाया है गृहस्थी बोला उसे भी ले चलो, दोनों साथ गये मिष्टान्न खाकर आए और रात को शास्त्र पढ़ कर आनन्द से सो गये प्रभात में सोमवसु को समझाया कि मैं एक दिन मीठा भोजन खाता हूं और दूसरे दिन उपवास करता हूं गुरू के बचनानुसार मीठा खाता हूं और उपवास से भूख भी दुसरे दिन अच्छी लगती है जिससे सादा भोजन भी मीठा लगता है और किसी के पास कुछ लेता नहीं जिससे लोग प्रिय हो गया हूं सोमघसु को उससे पूरा संतोष नहीं मिला जिससे पाटली पुत्र ( पट..
SR No.022110
Book TitleDharmratna Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyamuni
PublisherDharsi Gulabchand Sanghani
Publication Year1916
Total Pages78
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
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