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________________ S श्राद्धविधि प्रकरणं "अभक्ष्य किसको कहते हैं" वासी अन्न, द्विदल, नरम पूरी आदि, एक पानी से रांधा हुवा भात आदि दूसरे दिन सर्व प्रकारके खराब अन्न, जिसमें निगोद लगी हो वैसा अन्न, काल उपरान्त का पक्वान, बाइस अभक्ष्य, वत्तीस अनंतकाय, इन सबका स्वरूप हमारी की हुई वंदिता सूत्र की वृत्ति से जान लेना। विवेकवन्त प्राणी को जैसे अभक्ष्य बर्जनोय हैं वैसे ही बहुत जीवोंसे व्याप्त बहु बीज बाले फल भी वर्जनीय हैं । वैसे ही निंदा न होने देने के लिये रांधा हुवा सूरण, अद्रक, बैंगन, वगैरह यद्यपि अचित हुये हों और उसे प्रत्याख्यान भी न हों तथापि बर्ज. नीय हैं, तथा मूली तो पत्तों सहित त्याज्य है। सोंठ, हलदी, नाम मात्र स्वाद के बदलने से सुखाये बाद कल्पते हैं। "गरम किये पानीकी रीति" पानीमें तीन दफा उबाल आ जाय तबतक मिश्र गिना जाता है, इसलिये पिंडनियुक्ति में कहा है: उसिसोदेग मणुवत्ते तिदंड वासे अ पडिअ मित्तंमि । ' मुत्तुणा देसतिगं चाउल उदगं बहु पसन्नं ॥ ६॥ जब तक तीन बार उबाल न आवे तब तकका गरम पानी भी मिश्र गिना जाता है । इसके बाद अचित गिना जाता है ) जहां पर बहुत से मनुष्यों का आना जाना होता हो ऐसी भूमि पर पड़ा हुवा बरसाद का पानी जब तक वहां की जमीन के साथ परिणत न हो तब तक वह पानी मिश्र गिना जाता है, तदनंतर सचित हो जाता है। जंगलकी भूमिपर वरसाद का जल पड़ते ही मिश्र होता है उसके बाद तत्काल ही सचित बन जाता है । चावलों के धूवन का पानी आदेश त्रिक को छोड़ कर जिसका उल्लेख आगे किया जायगा तंदुलोदक जब तक गदला रहता है तब तक मिश्र गिना जाता है परंतु जब वह निर्मल हो जाता है तब से अचित्त गिना जाता है । ( आदेश त्रिक कहते हैं ) कोई आचार्य फर्माते हैं कि, चावलोंके थोवनका पानी एक बरतनमें से दूसरे बरतनमें डालते हुये जो छीटे उड़ते हैं वे दूसरे बरतनको लगते हैं । वे छोटें जब तक न सूख जाय तब तक चावलोंका धोवन मिश्र गिनना । कोई आचार्य यों कहते हैं कि, वह धोवन एक बरतनमेंसे दूसरे बरतनमें उचेसे डालनेसे उसमें जो बुलबुले उठते हैं वे जब तक न फूट जायें तब तक उसे मिश्रगिनना । कोई आचार्य कहते हैं कि, जब तक वे चावल गले नहीं तब तक वह चावलोंका धोवन मिश्र गिना जाता है; (इस ग्रंथ के कर्ता आचार्य का सम्मत बतलाते हैं) ये तीनों आदेश प्रमाण गिने जायें ऐसा नहीं मालूम होता है क्योंकि यदि कोई बरतन कोरा हो तो उसमें धोवन के छींटे तत्काल ही सूख जायें और चिकने बरतन में धोवन डालें तो उसमें लगे हुये छीटोंको सूखते हुये देर लगे, एवं कोई बरतन पवन में या अग्नि के पास रक्खा हो तो तत्काल ही सूख जाय और दूसरा बरतन बैसे स्थान पर न हो तो विशेष देरी लगे, इसलिये यह प्रमाण असिद्ध गिना जाता है। बहुत उंचे से धोवन बरतन में डाला जाय तो बहुत से बुलबुले उठे, नीचे से डाला जाय तो कमती उठे; वह थोड़े समयमें मिट जायें या अधिक समयमें मिटें इससे यह हेतू भी सिद्ध नहीं
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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