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________________ ummm श्राद्धविधि प्रकरण ५६ हो सकता । एवं चुल्हेमें अग्नि प्रबल हो तो थोड़ी ही देर में चावल गल जायें और यदि मंद हो तो देरी से गलें, इस कारण यह हेतु भी असिद्ध ही है। क्योंकि इन तीनों हेतुओं में काल का नियम नहीं रह सकता; इसलिये ये तीनों ही हेतु असिद्ध समझना। सच्चा हेतु तो यही है कि जब तक चावल का धोवन निर्मल न हो तब तक मिश्र समझना और तदनंतर उसे अचित गिनना। बहुत से आचार्यों का यही मत होने से यही व्यवहार शुद्ध है। एवं पहिली दफा, दूसरी दफा, और तीसरी दफाके धोवन में थोड़े ही टाईम तक चावल भिगोये हों तो मिश्र, बहुत देरतक चावल भिगोये हों तो अचित्त होता है; और चौथी दफाके धोवन में बहुत देर तक भी चावल रखें हों तो भी सचित्त ही गिनना ऐसा ब्यवहार है। विशेषता इतनी है कि, पहले तीन दफा का चावलोंका धोवन जब तक मलिन रहता है तब तक मिश्र रहता है परंतु जब वह बिलकुल निर्मल स्वच्छ बन जाता है तब अचित्त हो जाता है परंतु चौथी दफाका धोवन चावलोंसे मलिन ही नहीं होता इसलिये वह जैसा का तैसा ही पूर्व रूप में रहता है। तिव्वोदगस्स गहणं, केइ भाणेसु असुइ पडिसे हो । गिहि भायणेसु गहणं, ठियवासे मीसगच्छारो ॥१॥ अग्नि पर तपाये हुये पानी में से जब तक धुवां निकलता हो तब तक अथवा सूर्य की किरणोंसे अत्यंत तपा हुवा जो पानी होता है, उसे तीव्र उदक कहते हैं। वैसे तीव्र उदक को जब शस्त्रका अधिक संबंध होता है तब वह पानी अचित्त हो जाता है । उसे ग्रहण करने में किसी प्रकार की विराधना नहीं होती। कितने एक आचार्य कहते हैं, उपरोक्त पानी अपने पात्रमें ग्रहण करना । इस विषय में बहुत से विचार होने से आचार्य उत्तर देते हैं । उस पानीमें अशुचि पन है इसलिये अपने पात्रमें लेनेका निषेध है, इसी कारण गृहस्थकी कुंडी वगैरह बरतनमें लेना। तथा वरसाद बरसता हो तो उस समय मिश्र गिना जानेसे वह पानी नहीं लेना; परंतु बरसाद रुके बाद भी अंतमुहूर्त काल बीतने पर ग्रहण करने योग्य है । जो पानी बिलकुल प्रासुक हुवा है (अचित्त हुवा है ) वह चातुर्मास में तीन पहर के उपरांत पुनः सचित हो जाता है, इसीलिये उस तीन पहर के अन्दर भी अवित्त जल में क्षार, कलि चूना, वगैरह डालना कि, जिस से पानी भी निर्मल हो रहता है। "अचित जल का कालमान" उसिदिगं तिदंड, कलियं फासुजलं जइ कप्पं । नवरं गिलाणाइकए,.पहर तिगोवरीवि धरियध्वं ॥१॥ जायइ सचित्ततासे, गिम्हासु पहर पंचगस्सुवरि । बउपहरुवारे सिसिरे, वासासुजले तिपहरूवरि ॥२॥ प्रासूक जलके कालमान के लिये प्रवचन सारोद्धार के १३२ ३ द्वार में कहा है कि: "तीन उबाल वाला पानी अचित्त और प्रासूक जल कहलाता है, वह साधुजन को कल्पनीय है, परंतु ऊष्ण समय अधिक खुश्क होने से ऊष्ण ऋतु के दिनों में पांच पहर उपरांत समय होने पर वह जल पुनः सचित्त हो १२
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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