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________________ श्राद्धविधि प्रकरण • एक सौ आठ श्वासोश्वास प्रमाण कायोत्सर्ग करना चाहिए। और यदि दुःखप्न (लड़ाई, कुष, वैरी, विधा-तका स्वप्न ) देखा हो तो एक सौ श्वासोश्वास प्रमाण कायोत्सर्ग करना चाहिए । व्यवहार भाष्य में कहा है कि स्वप्न में १ जीवघात किया हो, २ असत्य बोला हो, ३ चोरी की हो, ४ परिग्रह उपर ममता की हो, ऐसा स्वप्न देखा हो अथवा अनुमोदन किया हो तो एकसौ श्वाभ्वोच्छ्वास प्रमाण कायोत्सर्ग करना चाहिये । گی " कायोत्सर्ग करने की रीति " "चंदेसु निम्मलयरा” तक एक लोगस्सके पश्च्चीस श्वासोच्छ्वास गिने जाते हैं, कायोत्सर्ग करनेसे एकसो श्वासोच्छ्रास का कायोत्सर्ग किया जाता हैं। यदि एकसो कायोत्सर्ग करना हो तो चार लोगस्स गिने जाते हैं। लोगस्स चार दफे पूरा गिनने से होता है । दूसरी रीति - महाव्रत दशवैकालिक प्रतिबद्ध है, उसका कायोत्सर्गमें ध्यान करे, क्योंकि उसका भी प्रायः पच्चीस श्लोक का मान है । सो कहना अथवा चाहे जो सज्झाय करने योग्य पच्चीस श्लोक का ध्यान करे 1 . इस प्रकार दशवैकालिक की वृत्तिमें लिखा हुआ है । पहिले पंचाशककी वृत्ति में लिखा है कि, कदाचित् मोह के उदय से स्त्रीसेवनरूप कुःस्वप्न आया हो तो तत्कालही उठकर इर्यावही करके एकसो आठ श्वासोच्छ्वास प्रमाण कायोत्सर्ग करे । इस तरह एकबार कायोत्सर्ग करता है तो भी अति निद्रादिक के प्रमाद में होने से दूसरी दर्फे प्रतिक्रमण करते समय पहले कायोत्सर्ग करना श्रेयस्कर है । यदि दिन में सोते समय कुःस्वप्न आया हो तथापि कायोत्सर्ग करना चाहिये, परन्तु उसी समय करना या संध्याके प्रतिक्रमण समय - इस बातका निर्णय किसी ग्रन्थ में देखने में न आने से बहुश्रुत के कहे मुजब करे । विवेकविलास में स्वप्नविचार के विषय में लिखा है कि, अच्छा स्वप्न देखकर फिर सोना न चाहिये, और दिन उदय होने पर उत्तम गुरू के पास जाकर स्वप्न निवेदन करना चाहिये । एवं खराब स्वप्न देख कर फिर तुरंत हो सो जाना चाहिये और उसे किसी के भी सामने कहना न चाहिये । समधातु ( वायु, पित्त, कफ, ये तीनों ही जिसे बराबर ) हों, प्रशांत हो, धर्म प्रिय हो, निरोगी हो, जितेंद्रिय हो, ऐसे पुरुष को अच्छे या बुरे स्वप्न फल देते हैं । १ अनुभव करने से, २ सुनने से, ३ देखने से, ४ प्रकृतिके बदलने से, ५ स्वभाव से, ६ अधिक चिंता से, ७ देव के प्रभाव से, ८ धर्म की महिमा से, ६ पापकी अधिकता से, एवं नव प्रकार के स्वप्न आते हैं । इन नव प्रकार के स्वप्नों में से पहले ६ प्रकार के स्वप्न शुभ हों या अशुभ परन्तु वे सब निरर्थक समझना चाहिये । और पीछे के तीन प्रकार के स्वप्न फल देते हैं। यदि रात्रि के पहिले प्रहर में स्वप्न देखा हो तो बारह महीने में फल मिलता है, दूसरे प्रहर में देखा हो तो वह छ महीने में फलदायक होता है, तीसरे प्रहरमें देखा हो तो तीन मास में फल देता है, और यदि चौथे प्रहर में देखा हो तो एक मास में फलदायी होता है, पिछली दो घडी रात्रि के समय: स्वप्न देखा हो तो सचमुच दस दिन में फलदायक होता है और यदि सूर्योदय के समय देखा हो तो तत्काल ही फल देता है। बहुत से स्वप्न देखें हों, दिन में स्वप्न देखा हो, चिंता या व्याधि से स्वप्न देखा हो और मल मूत्रादि की पीड़ा से उत्पन्न हुवा खप्न देखा हो तो वह सर्व ऐसे चार लोगस्स का आठ श्वासोश्वास का
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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