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________________ ७८ श्राद्धविधि प्रकरण से वींध डाली थी, उसके समीप रहे हुए किसी एक साधु ने उसे नवकार मंत्र सुनाया। उससे वह चोल मृत्यु पाकर सिंहलदेश के राजा की मानवंती पुत्रो पने उत्पन्न हुई। जब वह यौवनावस्था को प्राप्त हुई उस समय उसे एक दिन छींक आने पर पास रहे हुये किसो ने “णमो अरिहंताणं' ऐसा शब्द उच्चारण किया इससे उस राजकुमारी को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुवा । इससे उसने अपने पिता को कह कर पांच सौ जहाजों में माल भर कर भरुव नगर के पास आकर उस जंगल में उसी वड़ वृक्ष के पास (जहांपर स्वयं मृत्यु को प्राप्त हुई थी) 'समलो विहार उद्धार' इस नाम का मुनिसुव्रत स्वामी का बड़ा मंदिर बनवाया। इस प्रकार जो प्राणी मृत्यु पाते समय भी नवकार का स्मरण करता है उसे पर लोक में भी सुख और धर्म की प्राप्ति होती है। इसलिए सोते उठकर तत्काल नवकार मंत्र का ध्यान करना श्रेयस्कर है । तथा धर्म जागरिका करना (पिछली रात में विचार करना ) सो भी महा लाभ कारक है । कहा है कि,.. . कोह का मम जाइ, किं च कुलं देवयाव के गुरुणा । को मह धम्मो के वा, अभिग्गहा का अवथ्था मे ॥ १ ॥ कि मक्कडं किच्च मकिच्चसेसं, किं. सक्कणिज्जनसमायरामि । किंमे परोपासइ किं च अप्पा, किं वा खलिभं न विवज्जयामि ॥ २॥ मैं कौन हूँ, मेरी जाति क्या है, मेरा कुल क्या है, मेरा देव कौन है, गुरु कौन है, मेरा धर्म क्या है, मेरा अभिग्रह क्या है, मेरी अवस्था क्या है, मेरा कर्तव्य क्या है, मैंने क्या किया और क्या करना बाकी है, मैं क्या करणी कर सकता हूं, और क्या नहीं कर सकता, क्या मुझ पापी को ज्ञानी नहीं देखते ? क्या मैं अपने किये हुए पाप को नहीं जानता ?। . इस प्रकार प्रति दिन सोकर उठते समय विचार करना चाहिये । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव का भी इस प्रकार विवार करना चाहिये कि द्रव्य से मैं कौन हूं। नर हूं या नारी, क्षेत्र से मैं किस देश में हूं, किस नगर में हूं, किस ग्राम में हूं, अपने स्थान में हूं या अन्य के, काल से इस वक्त रात्रि है या दिन, भाव से मैं धर्मी हूं या अधर्मी । इस प्रकार द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावों का विचार करते हुये मनुष्य सावधान होता हैं। अपने किये हुए पाप कर्म याद आने से उन्हें तजने की तथा अंगीकार किए हुए नियम को पालन करने की और नये गुण उपार्जन करने की बुद्धि उत्पन्न होती है। ऐसा करने से महा लाभ की प्राप्ति होती हैं। सुना जाता है कि आनन्द कामदेवादिक श्रावक भी पिछली रात्रि में धर्मजागरिका करते हुए प्रतिबोध पाकर श्रावकी पडिमा वहन करने की विचारणा करने से उसके लाभ को भी प्राप्त हुए थे। इसलिए धर्म जागरिका जरूर करनी चाहिए। धर्म जागरिका किए बाद यदि प्रतिक्रमण करना हो तो वह करे, प्रतिक्रमण न करना हो तो उसे भी ( राग, मोह, माया, लोभ से उत्पन्न हुए ) कुस्खप्न और (देष यानी जो क्रोध, मान, इर्षा, विषाद से उत्पन्न हुवा) दुःस्वप्न ये दोनों प्रकार के स्वप्न अपमांगलिक होने से इनका फल नष्ट करने के लिए जागृत हो तत्काल ही कायोत्सग जरूर करना चाहिए । उसमें यदि कुस्खप्न (यानी खप्न में स्त्री सेवन की हो ऐसा देखा हो तो
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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