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________________ ७७ श्राद्धविधि प्रकरण . "नवकार महिमा फल" नवकार मंत्रास लोक और परलोक इन दोनों में अत्यन्त उपकारी है । महानिशीथ सूत्र में कहा है कि, - नासेइ चोर सावय, विसहर जल ज लण बन्धण भयाई। चिंतितो रख्खस, रण राय भयाई भावेण ॥१॥ - भावसे नरकारमंत्र गिनते हुये चोर, सिंह, सर्प, पानी, अग्नि, बंधन, राक्षस, संग्राम, राज आदि भय दूर होते हैं। दूसरे ग्रन्थों में कहा है कि, पुत्रादि के जन्म समय भी नवकार गिनना चाहिये, जिससे नवकार के फल से वह ऋद्धिशाली हो । मृत्यु के समय भी नवकार गिनना चाहिये कि जिससे मरने वाला अवश्य सद्गति में जाता है । आपदा के समय भी नवकार गिनना चाहिये कि, जिससे सैकड़ों आपदायें दूर होती हैं । धनवंत को भो नवकार गिनना चाहिये कि, जिससे उसकी ऋद्धि वृद्धि को प्राप्त होती है । नवकार का एक अक्षर सात सागरोपम का पाप दूर करता हैं । नवकार के एक पद से पचास सागरोपम में किये हुये पाप का क्षय होता है। और सारा नवकार गिनने से पांचसों सागरोपम का पाप नाश होता है । विधि पूर्वक जिनेश्वर की पूजा करके जो भव्य जीव एक लाख नवकार गिनता है वह शंकारहित तीर्थंकर नाम गोत्र बांधता है । आठ करोड़, आठ लाख, आठ हजार, आठ सो, आठ, नवकार गिने तो सचमुच ही तीसरे भव में मोक्षपद को पाता है । "नवकार से पैदा होने वाले इस लोक के फल पर शिवकुमार का दृष्टांत' जुवा खेलने आदि व्यसन में आसक्त शिवकुमार को उसके पिता ने मृत्यु समय शिक्षा दी कि जब कभी कष्ट का प्रसंग आवे तो नवकार गिनना। पिता की मृत्यु के बाद वह अपने दुर्व्यसन से निर्धन हो किसी धनार्थी दुष्ट परिणामवाले त्रिदंडी के भरमाने से उसका उत्तर साधक बना, काली चतुर्दशी की रात्रि में उसके साथ श्मशान में आकर हाथ में खङ्ग ले योगी द्वारा तयार रखे हुए मुर्दे के पैर को मसलने लगा। उस समय मन में कुछ भय लगने के कारण वह नवकार का स्मरण करने लगा। दो तीन दफा वह मुर्दा उठ कर उसे मारने आया परंतु नवकार मंत्र के प्रभाव से उसे मार न सका । अंत में तीसरी दफे उस मुर्दे ने उस त्रिदण्डी योगी का हो वध किया। इससे वह योगी ही सुवर्ण पुरुष बन गया, उससे उसने बहुत सी ऋद्धि प्राप्त की। उसके द्वारा उसने बहुतसा धर्मकृत्य कर अंत में स्वर्गगति प्राप्त की। इस प्रकार नवकार मंत्र के प्रभाव से शिवकुमार जीवित रहा और बड़ा धनवान होकर वहां से जिनमंदिर आदि शुभ कृत्य करके अंत में वह देव लोक में गया। ऐसे जो प्राणी नवकार मंत्र का ध्यान स्मरण करता है उसे इस लोक के भय हरकत नहीं करते। "नवकार से पैदा होते पारलौकिक फल पर बड़ की समली का दृष्टांत" भरुच नगर के पास जंगल में एक बड़ के वृक्ष पर बैठी हुई किसी एक चील को किसी शिकारी ने बाण
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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