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________________ ६८ श्राद्धविधि प्रकरण ___ काम काज करने वाले मनुष्य यदि जल्दी उठें तो उन्हें धन की प्राप्ति होती है और यदि धर्मी पुरुष जल्दी उठे तो उन्हें भपने परलौकिक कृत्य, धर्मक्रिया आदि शांति से हो सकते हैं। जिस प्राणी के प्रातः काल में सोते हुये ही सूर्य उदय होता है, उसकी बुद्धि, ऋद्धि और आयुष्य की हानि होती है। यदि किसी से निद्रा अधिक होने के कारण या अन्य किसी कारण से यदि पिछली प्रहर रात्रि रहते न उठा... जाय तथापि उसे अंत में चार घड़ी रात बाकी रहे उस वक्त 'नमस्कार' उच्चारण करते हुए उठ कर प्रथम से द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का उपयोग करना चाहिये। यानी द्रव्य से विचार करना कि मैं कौन हूं ? श्रावक हूं या अन्य ? क्षेत्र से विचार करना क्या मैं अपने घर हूं या दूसरे के, देश में हूं या परदेश में, मकान के ऊपर सोता हूं या नीचे ? काल से विचार करना चाहिये कि, बाकी रात कितनी है, सूर्य उदय हुवा है या नहीं ? भाव से विचार करना चाहिये कि मैं लघु नीति ( पिशाब) बड़ी नीति (टट्टो जाना) की पोड़ा युक्त हुवा हूं या नहीं ? इस प्रकार विचार करते हुये निद्रा रहित हो, फिर दरवाजा किस दिशा में है, लघुनीति आदि करने का स्थान कहां है ? इत्यादि विचार करके नित्य की क्रिया में प्रवृत्त हो। साधु को आश्रित करके ओघयुक्ति ग्रन्थ में कहा है कि दवाइ उवओगं उस्सास निरूंमणालोयं ॥ लघु नीति पिछली रात में करनी हो तब द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावका विचार उपयोग किये वाद नासिका बंद करके श्वासोश्वास को दबावे जिससे निद्रा विच्छिन्न हुवे बाद लघु नीति करे। यदि रात्रि को कुछ भी जनाने का प्रयोजन पड़े तो मन्द स्वर से बोले तथा यदि रात्री में खोसी या खुंकारा करना पड़े तथापि धीरे से ही करे किन्तु जोरसे न करे ! क्यों कि ऐसा करने से जागृत हुवे छिपकली, कोल,न्योला ( नकुल) आदि हिंसक जीव माखी वगैरह के मारने का उद्यम करते है। यदि पड़ोसी जागे तो अपना आरंभ शुरू करे, पानी वाली, रसोई करने वाली, चक्की पीसने वाली, दलने वाली, खोदने वाली, शोक करने वाली.मार्गमें चलने वाला, हल चलाने वाला, वन में जाकर फल फूल तोड़ने वाला, कोल्हु चलाने वाला, चरखा फिराने वाला, धोबी, कुम्हार, लुहार, सुत्रधार ( बढ़ई) जुवारी (जुवा खेलने वाला ) शस्त्रकार, मद्यकार, (दारू की भट्टी करनेवाला) मछलियां पकड़ने वाला, कसाई, वागुरिक, (जङ्गल में जाकर जालमें पक्षियों को पकड़नेवाला) शिकारी, लुटारा, पारदारिक, तस्कर, कुव्यापारी, आदि एक एक की परंपरा से जागृत हो अपने हिंसा जनक कार्य में प्रवर्तते हैं इस से सब का कारणिक दोष का हिस्सेदार स्वयं बनता है, इस से अनथ दण्ड की प्राप्ति होती है। भगवति सूत्र में कहा है कि जागरिआ धम्भीणं । अहम्मीणं तु सुत्त्यासेया । वच्छाहिव भयणीए अहिंसु जिगोजयंतीए । १ ॥ वच्छ देश के अधिपति की बहिन को श्री वर्धमान स्वामी ने कहा है कि- हे जयन्ति श्राविका, धर्मवंत प्राणियों का जागना और पापी प्राणियों का सोना कल्याणकारी होता है।
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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