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________________ श्राद्धविधि प्रकरण. .. श्रति यस्य पापानि । पूर्वबद्धान्यनेकशः ॥ आवृतश्च व्रतैर्नित्यं । श्रावकः सोऽभिधीयते ॥ १ ॥ पूर्वं कालीन बांधे हुये बहुत से पापों को कम करे और व्रत प्रत्याख्यान से निरंतर बेष्टित रहे वह श्रावक कहलाता है 1 ક समतदंसणा | पदी अहंजई जणामुणेइअ । सामाया परमं । जो खलु तं सात्र बिति ॥ २ ॥ समाकित व्रत प्रत्याख्यान प्रति दिन करता रहे यति जनके पास से उत्कृष्ट सामाचारी (आचार ) सुने उसे श्रावक कहते हैं । श्रद्धालुनां श्राति पदार्थचिंतनाद्धनानि पात्रेषु वपत्यनास्तं | किरत्य पुण्यानि सुसाधुसेवनादतोपि तं श्रावकमा दुरुत्तमाः ॥ ३ ॥ नत्र तत्वों पर प्रीति रक्खे, सिद्धांतको सुने, आत्मस्वरूप का चिंतन करे, निरंतर पात्रमें धन नियोजित करे, सुसाधुकी सेवा कर पाप को दूर करे, इतने आचरण करने वाले को भी श्रावक कहते हैं। श्रद्धालुतां श्राति शृणोति शासनं । दानं वपत्यांशु वृणोति दर्शनं ॥ क्षिपत्य पुण्नानि करोति संयमं । तं श्रावकं प्राहुरमी विचक्षणाः ॥ ४ ॥ इस गाथा का अर्थ उपरोक्त गाथा के समान ही समझना । इस प्रकार "श्रावक" शब्द का अर्थ कहे बाद दिनकृत्यादि छ कृत्यों में से प्रथम कौनसा कर्तव्य करना चाहिये सो कहते हैं । "प्रथम दिनकृत्य" नवकारेण विबुद्धो । सरेइसो सकुल धम्मनिअमाई ॥ पकिमि असुइइअ । गिहे जिणं कुणइसंवरणं ॥ १ ॥ नमो अरिहंताणं अथवा सारा नवकार गिनता हुवा श्रावक जागृत होकर अपने कुल के योग्य धर्मकृत्य नियमादिक याद करे। यहां पर यह समझना चाहिये कि, श्रावकको प्रथमसे ही अल्प निद्रावान् होना चाहिये । जब एक प्रहर पिछली रात रहे उस क्क्त अथवा सुबह होने से पहिले उठना चाहिये। ऐसा करने से इस लोक में यश, कीर्ति, बुद्धि, शरीर, धन, व्यापारादिक का और पारलौकिक धर्मकृत्य, व्रत, प्रत्याख्यान, नियम वर्गरह का प्रत्यक्ष ही लाभ होता है। ऐसा न करनेसे उपरोक लांभ की हानि होती है । लौकिक शास्त्र में भी कहा हुवा है कि; कम्मीणां धनसंपजे | धम्मीणां परलोय ॥ जिहिं सूता रविगमे बुद्धि आउ न होय ॥
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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