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________________ श्राद्धविधि प्रकरण तू अपने जीनेकी इच्छा रखता हो तो इस नगरमें प्रवेश न करना; पशुत्व प्राप्त होने पर भी हमें कुछ उत्तमता प्राप्त हुई है इसलिये उत्तम प्राणी निष्प्रयोजन बचन नहीं बोलता। यदि तुझे यह जाननेकी इच्छा होती हो तो नगरमें प्रवेश करनेके लिये में क्यों मना करती हूँ सो इस वातका में प्रथमसे ही स्पष्टीकरण कर देती हूँ तू सावधान हो कर सुन। इस रत्नपुर नगरमें पराक्रम और प्रभुतासे पुरन्दर (इन्द्र) के समान पुरन्दर नामक राजा राज्य करता था। शहरमें अनेक प्रकारके नये नये वेष बनाकर घर घर चोरी करने वाला और छल सिद्धिके समान किसी से न पकड़ा जाने वाला चोर चोरी किया करता था। नगरमें अनेक भयंकर चोरियां होने पर भी बड़े बड़े तेजस्वी नगर रक्षक राजपुरुष भी उसे न पकड़ सके। कितना एक समय इसी प्रकार बीत गया; एक दिन राजा अपनी सभामें बैठा था उस वक्त नगरके कितने एक लोगोंने आ कर राजाको प्रणाम करके यह विज्ञप्ति की कि हे स्वामिन् ! नगरमें कोई एक ऐसा चोर पैदा हुआ है कि जिसने सारे नगरकी प्रजाको उपद्रवयुक्त कर डाला है, अब हमसे उसका दुःख नहीं सहा जाता। यह बात सुन कर राजाने नगर रक्षक पुरुषोंको बुला कर धमकाया। नगर रक्षक लोग बोले कि महाराज! जिस प्रकार असाध्य रोगका कोई उपाय नहीं वैसे हा इस चोरको पकड़ने का भी कोई उपाय नहीं रहा। दरोगा बोला कि महाराज ! मैं अपने शरीरसे भी बहुत कुछ उद्यम कर चुका हूँ परन्तु कुछ भी सफलता नहीं मिलती, इसलिये अब आप जो उचित समझे सो करें। अन्तमें महा तेजस्वी और पराक्रमी वह राजा स्वयं ही अंधेरी रातमें चोरको पकड़ने के लिये निकला। एक दिन अन्धेरी रातमें चोरी करके धन ले कर वह चोर रास्तेसे जा रहा था, राजाने उसे देख कर चोरका अनुमान किया परन्तु उस बातका निर्णय करनेके लिये राजा गुप्त वृत्तिसे उस व्यक्तिके पीछे चल पड़ा। उस धूर्त चोरने राजाको अपने पीछे आते हुए शीघ्र ही पहिचान लिया। फिर उत्पातिक बुद्धि वाला वह राजाकी दृष्टि बचा कर पासमें आये हुये किसी एक मठमें जा घुसा। उस मठमें तपकप कुमुदको विकस्वर करनेमें चन्द्रसमान कुमुद नामक विद्वान् तापस रहता था। वह तापस उस समय घोर निद्रामें पड़ा होनेके कारण चोर उस चुराये हुए धनको वहां रख कर चल पड़ा। इधर उधर तलाश करते हुये चोरको न देखनेसे राजा तत्काल उस समीपस्थ मठमें गया। वहां पर धन सहित तापसको देख कोपायमान हो राजा कहने लगा कि, दंड और मृग चर्मको रखने वाले अरे दुष्ट चोर तापस! इस वक्त चोरी करके कपटसे यहां आ सोया है। तू कपट निद्रा क्यों लेता है ? तुझे मैं दीर्घ-निद्रा दूंगा। राजाके वज्रपात समान उद्धत वचन सुनते ही वह एकदम जाग उठा। परन्तु भयभीत होनेके कारण वह जागने पर भी कुछ बोल न सका। निर्दयी राजाने नौकरों द्वारा बंधवा कर उसे प्रातःकालमें मार डालनेकी आज्ञा दे दो। उस समय मैं चोर नहीं हूं, बिना ही विचार किये मुझे क्यों मारते हो, इस प्रकार उसके सत्य कहने पर भी राजा उस पर विशेष क्रोधित होने लगा। सच है कि जब मनुष्यका देव रूठ जाता है तब कोई भी सत्य बात पर ध्यान नहीं देता। यमराज के समान क्रूर उन राज सुभटोंने उस निर्दोष तापसको गधे पर चढ़ा कर उसकी विविध प्रकारसे बिडम्बना कर शूली पर चढ़ा दिया। .
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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