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________________ २६४ श्राद्धविधि प्रकरण ऊपर जो लिखा है कि घरका कार्य भार पिता पुत्रको सोंप दे उसमें भी यही समझना चाहिए कि यदि पिताने अपनी हयाती में ही पुत्रको वसे कार्यमें जोड़ दिया हो तो उनमें निरन्तर मन लगाये रखनेसे और मनमें उस तरफका विशेष ख्याल होनेसे उसे अपनी स्वच्छंदता का परित्याग करनेकी जरूरत पड़ती है। अपने मनमें उठते हुए खराब विचारोंको दवानेकी या धन रक्षण करनेकी जरूरत पड़ती है। धन कितनी मिहनत से पैदा किया जाता है इस बातका ख्याल हो जानेसे वह अपनी आयके मुताविक खर्च करने की मेजना करता है। बल्कि आयसे भी कम खर्च करनेकी फरज पड़ती है। घरके आगेवानों द्वारा ही उसे घरके मालिकपन की प्रतिष्ठा दी हुई होती है। इसीसे उसकी शोभा बढ़ती है। यदि दो पुत्रों में से छोटे पुत्रमें अधिक योग्यता हो तो परीक्षा करके उसे ही घरका कार्य भार सोंपा जा सकता है। ऐसा करनेसे कुटुम्ब का निर्वाह और शोभा बढ़ती है जैसे कि प्रसेनजित राजाने अपने सौ पुत्रोंकी परीक्षा करनेमें कुछ भी बाकी न उठा रक्खा, तब अपनी निर्धारित सब परीक्षाओं में अग्रेसरी सबसे छोटा पुत्र श्रेणिककुमार निकला, जिससे उसे ही राज्य समर्पण किया। इसी प्रकार गृहस्थ भी अपने तमाम पुत्रों से गुणाधिक पुत्रको ही घरका कार्यभार सोपे, तथापि दूसरों का मन भी प्रसन्न रखना । जैसी जिसकी बुद्धि हो उसे वैसे ही कार्य पर नियुक्त करना। जिससे सबका मन प्रसन्न रहे। जैसे पुत्रका उचित बतलाया वैसे ही पुत्रियों के प्रति भी उचिताचरण समझ लेना। पुत्रवधू का उचित सर्व प्रकारसे उसकी बुद्धि और गुणपरसे समझ लेना चाहिये। "बहकी परीक्षा पर रोहिणीका दृष्टान्त” राज्यगृही नामक नगरमें धन्ना नामक शेठ रहता था। उसने अपने चार पुत्रोंकी बहुओंकी बुद्धिकी परीक्षा करनेके लिए एक समय अपने सगे सम्बन्धियों का सम्मेलन किया, उस वक्त एक एक बहूको पांच पांच चावलके धान दे कर विदा किया। फिर कितने एक साल बाद फिरसे सगे सम्बन्धियों का सम्मेलन करके बड़ी पुत्रवधू को याद दिला कर उसे दिये हुये वे पांच धानके दाने मांगे तब उसने ले कर तुरन्त फेंक देनेके कारण नवे दाने ला कर ससुरके हाथमें दे दिये; ससुरने दानोंको देख कर पूछा कि ये वही हैं ? उसने कहा आपके दिये हुये तो मैंने फेंक दिये थे ये दूसरे हैं। दूसरी बहूको बुला कर दाने मांगने पर उसने कहा आपके दिये हुए दाने तो मैं खा गई थी। तीसरी बहूको बुला कर पूछा तब उसने कहा कि आपके दिये दाने मेरे गहनेके डबेमें रक्खे हैं, यदि आपको चाहिये तो ला दूं। यों कह कर उसने दाने ला दिये। फिर चौथी रोहिणी नामा पुत्रवधू से जब वे दाने माँगे तब उसने कहा यदि आपको घे दाने चाहिये तो मेरे साथ गाड़िये भेजो। ससुरने पूछा कि पांच दानोंके लिये गाड़ियों का क्या काम ? रोहिणी बोली-"आपके दिये हुए पांच दाने मैंने पीहरमें भेज कर खेतमें बोनेके लिए कह दिया था, अब उन्हें उसी प्रकार बोये जाते हुये कई वर्ष बीत गये इससे मेरे पीहर वालोंने उन पांच दानोंकी बृद्धि करके वखारें भर रक्खी हैं, इसलिए अब वे गाड़ी विना किस तरह आ सकें अतः उन्हें गाड़ियों में लाया जा सकता है। धना शेठने उन चार पुत्र
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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