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________________ पर श्राद्धविधि प्रकरण रात्रिके समय स्त्रीको राज मार्ग या अन्य किसी बड़े मार्गमें, या दूसरे लोगोंके घर जानेकी मनाई करे। क्योंकि रात्रिके प्रचारसे कुल स्त्रियोंको भी मुनिके समान दोष लगनेका सम्भव है। धर्म कार्यमें कदाचित् प्रतिक्रमणादिक करने जाना हो तो भी माता, बहने, या किसी अन्य सुशीला स्त्रियोंके साथ, जाय। घरके कार्य दान देना, सगे सम्बन्धियों का सन्मान करना, रसोईका काम करना. स्त्रीको इत्यादि कार्यों में जोड रखना चाहिये। क्योंकि यदि उसे ऐसे कार्यों में न जोड रख्खें तो वह काम काज करने में आलसु बन जाय, घरके काम बिगड़ें वह नवी चपलतायें सीखे, मनमें उदासी आवे, अनाचार सेवनकी बुद्धि पैदा हो और शरीर भी तन्दुरुस्त न रहे, इसलिये घरके काम काजोंमें जोड़ रखना उचित है कहा है कि शय्योत्पाटनगेह मार्जनपयः पावित्र्यचुल्लिक्रिया। स्थालीतालनधान्यपेषणभिदागोदोहतन्मंथने ॥ पाकस्तत्परिवेषणं समुचितं पात्रादि शौचक्रिया। स्वश्रु भर्तननन्ददेविनमाः कृत्यानि बद्धा बधूः ॥ सोकर उठे बाद सबकी शय्या याने विछौने उठाना, घरको साफ करना, पानी छानना, चूल्हा साफ करना, बासी बरतन मांजना, आटा पीसना, गाय, भैंसको हो तो उसे दूहना, दही विलौना, रसोई करना रसोई किये चाद यथायोग्य परोसना, बर्तन धोना, सासू, पति, नणंद, देवर, जेठ, वगैरहका विनय करना, इतने कार्यों में बहू नियुक्त ही रहती है। वैसे कार्यों में उसे सदैव जोड़ रखना। उमास्वाति वाचकने प्रशमरति ग्रन्थमें भी कहा है कि: पैशाचिकमाख्यानं धृत्वा गोपायनं च कुलवध्वा ॥ संयमयोगैरात्मा। निरन्तरं व्यापृतः कार्यः॥ - मन वश करने पर आवश्यक नियुक्ति की बृहत् वृत्तीमें कहा हुवा पिशाचको दृष्टान्त-एक शेठ प्रतिदिन गुरुसे विनती करता कि मुझे कोई ऐसा मन्त्र दो कि जिससे कोई देवता वश हो जाय। गुरुने उसे अयोग्य समझकर मना किया तथापि उसने आग्रह न छोड़ा, इससे गुरुने उसे एक सिद्ध मन्त्र दिया। उसके साधनसे उसे एक देवता वश हुआ। देवता कहने लगा-"मैं तेरे बश अवश्य है परन्तु यदि मुझे हरवक्त कुछ काम न सोंपेगा तो जब मैं निकम्मा हूंगा तब तेरा भक्षण कर डालूंगा।" इससे सेठ घबराया और गुरुके पास जाकर पूछने लगा कि-"अब मुझे क्या करना चाहिये।" गुरुने कहा-"उस देवतासे एक लंबा बांस मंगवाकर तेरे घरके सामने गाड़ दे और उसे उस बांस पर चढ़ने उतरनेकी आज्ञा दे । जब तुझे कुछ कार्य करानेकी जरूरत पड़े तब उसे बुलाकर करा लेना। बाकीका समस्त समय उसे बांस पर चढ़ उतरनेकी आज्ञा दे रखना। जिससे तुझे उसकी तरफसे कुछ भी भय न रहेगा।" उसने वैसे ही किया, जिससे वह देवता अन्तमें कंटाल कर उसके पास आ हाथ जोड़ कर बोला-"अब मुझे छुट्टी दो। जब मेरा काम पड़ेगा तब मैं याद करते ही फौरन आकर आपका काम कर दूंगा। ऐसा करनेसे वे दोनों सुखी हुए। यह पिशाचका दृष्टान्त याद रखकर अपनी कुलबधूका मन रूपी पिशाच ठिकाने रखनेके लिए हर
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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