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________________ श्राद्धविधि प्रकरण २६३ सुबह होने के बाद चारोंमेंसे एक दो जनेको पासमें रहे हुये गांवमेंसे खान पान लेनेके लिये भेजा । और दो जने वहां ही बैठे रहे। गांवमें गये हुवोंने विचार किया कि, यदि उन दोनोंको जहर देकर मार डालें तो वह सुवर्ण पुरुष हम दोनों को ही मिल जाय । यदि ऐसा न करें तो चारोंका हिस्सा होने से हमारे हिस्सेका चतुर्थ भाग आयगा । इसलिये हम दोनों मिल कर यदि भोजनमें जहर मिला कर ले जांय तो ठीक हो । यह विचार करके वे उन दोनों के भोजनमें विष मिलाकर ले आये। इधर वहां पर रहे हुए उन दोनोंने विचार किया कि हमें जो यह अतुल धन प्राप्त हुवा है यदि इसके चार हिस्से होंगे तो हमें विलकुल थोड़ा थोड़ा ही मिलेगा, इस लिये जो दो जने गांवमें गये हैं उन्हें आते ही मार डाला जाय तो सुवर्ण पुरुष हम दोनोंको ही मिले। इस विचारको निश्चय करके बैठे थे इतनेमें ही गांवमें गये हुए दोनों जने उनका भोजन ले कर वापिस आये तब शीघ्र ही वहां दोनों रहे हुये मित्रोंने उन्हें शस्त्र द्वारा जानसे मार डाला । फिर उनका लाया हुवा भोजन खानेसे वे दोनों भी मृत्युको प्राप्त हुये । इस प्रकार पाप ऋद्धिके आनेसे पाप बुद्धि ही उत्पन्न होती हैं अतः पाप बुद्धि उत्पन्न न होने देकर धर्म ऋद्धि ही कर रखना, जिससे वह सुख दायक और अविनाशी होती है । उपरोक्त कारणके लिए ही जो द्रव्य उपार्जन हुवा हो उसमें से प्रतिदिन, देव पूजा, अन्न दानादिक, एवं संघ पूजा, स्वामीवात्साल्यादिक समयोचित धर्म कृत्य करके अपनी रिद्धि पुण्योपयोगिनी करना । यद्यपि समयोचित पुण्य कार्य ( स्वामी वात्सल्यादिक) विशेष द्रव्य खर्चनेसे बड़े कृत्य गिने जाते हैं, और प्रतिदिन के धर्म कृत्य थोड़ा खर्च करनेसे हो सकनेके कारण लघु कृत्य गिने जाते हैं, तथापि प्रतिदिन के पुण्य कार्य पूजा प्रभावनादि करते रहनेसे अधिक पुण्य कर्म हो सकता है। तथा प्रतिदिन के लघु पुण्य कर्म करने पूर्वक ही समयोचित बड़े पुण्य कर्म करने उचित गिने जाते हैं। इस वक्त धन कम है परन्तु जब अधिक धन होगा तब पुण्य कर्म करूंगा इस विचारसे पुण्य कर्म करने में विलम्ब करना योग्य नहीं। जितनी शक्ति हो उतने प्रमाण वाली पुण्य करणी करलेना योग्य है । इसलिये कहा है कि थोड़े में से थोड़ा भी दानादिक धर्म करणीमें खर्च करना, परन्तु बहुत धन होगा तब खर्च करूंगा ऐसे महोदय की अपेक्षा न रखना। क्योंकि इच्छाके अनुसार शक्ति धनकी वृद्धि न जाने कब होगो या न होगी । जो आगामी कल पर करने का निर्धारित हो हो सो पहले ही प्रहर में कर ! क्योंकि यदि इतने करेगा । वह आज ही कर, जो पीछले प्रहर करनेका निर्धारित समय में मृत्यु आगया तो वह जरा देर भी विलम्ब न " द्रव्य उपार्जन के लिए निरन्तर उद्यम ” द्रव्योपार्जन करने में भी उचित उद्यम निरन्तर करते रहना चाहिये । कहा है कि व्यापारी, वेश्या, कवि, भाट, चोर, जुएबाज, विप्र, ये इतने जने जिस दिन कुछ लाभ न हो उस दिनको व्यर्थ समझते हैं।
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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