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________________ श्राद्धविधि प्रकरण रह सकता। परंतु वह शुकराज कौन था ? उसे इतना ज्ञान कैसे हुआ ? वह इतना बड़ा उपकार कैसे कर सका ? और वह कहां से आया और कहां गया होगा ? उस वृक्षसे बस्त्रालंकार की वृष्टि कैसे हुई ? और यह सेना ऐसी परिस्थिति में मेरे पास कैसे आई ? इत्यादिक जो मेरे मन में आश्चर्य जनक संदेह हैं उन्हें गुफा के अंधकार को दूर करने के लिये जैसे दीपक ही समर्थ है वैसे ही ज्ञानी के बिना अन्य कौन दूर कर सकता है ? सव राजाओंमें मुख्य वह मृगध्वज राजा जब पूर्वोक्त बिचारोंसे व्यग्रचित्त होकर इधर उधर देख रहा था तब उसके सेनापति ने संमुख आकर राजासे कहा कि स्वामिन् यह सब कुछ क्या व्यतिकर है ? राजा ने सब सैनिकों के सामने जहाँ से शुकराज का मिलाप हुआ था वहां से लेकर अदृश्य होने तक का सर्व वृत्तांत कह सुनाया। इस बृत्तांत को सुनकर आश्चर्य निमग्न हो सैनिक बोलने लगे कि महाराजा यह शकराज आपपर जब इतना अत्यंत वत्सल रखता है तो वह आपको फिर भी अवश्य मिलेगा और आपके मनकी चिन्ता दूर करेगा। क्योंकि इस प्रकार का वात्सल्य रखने वाला ऐसी उपेक्षा करके कदापि नहीं जा सकता। आपके मनोगत संदेह को भी वही दूर करेगा। क्योंकि यह तोता किसी भी कारण से ज्ञानी मालूम होता हैं अतः ज्ञानी को शंका दूर करना यह कुछ बड़ी बात नहीं। अब आप यह सर्व चिन्ता छोड़कर नगर में पधारकर उसे पवित्र करें, और आपका बहुमान करने वाले नागरिकों को अपने दर्शन देकर आनंदित करें। ___ राजा ने सैनिकों का समयोचित कथन मंजूर किया। हर्ष पैदा करने वाले मंगलकारी वाजित्रों का नाद आकाश को पूर्ण करने लगा। बड़े महोत्सव पूर्वक राजा ने नगरमें प्रवेश किया। मृगध्वज राजा का आगमन सुनते ही चंद्रशेखर का मद इस प्रकार उतर गया जैसे कि गरुड़ को देख कर सर्प का गर्व उतर जाता है। उसने उस वक्त अपना स्वामीद्रोह छिपानेके लिये मृगध्वज राजा के पास भेट लेकर एक भाटको भेजा। भाट राजा के पास आकर प्रणाम कर के बोला-“हे महाराज । आप की प्रसन्नता के लिये चंद्रशेखर राजा ने मुझे आपके पास विशेष विचार ज्ञापित करने के लिये भेजा है। वह विशेष समाचार यह है कि आप किसी छलभेदी के छल से राज्य सूना छोड़ कर उसके पीछे चले गये थे। उसके बाद हमारे राजा चंद्रशेखर को यह बात मालूम होनेसे आपके नगर की रक्षा के लिए वे अपने सैन्य सहित नगर के बाहर पहरा देनेके आशय से ही आ रहे थे; तथापि ऐसे स्वरूप को न जानकर आपके सुभट लोगोंने सन्नद्धबद्ध होकर जैसे कोई शत्रु के साथ युद्ध करनेको तयार होता है वैसे तुमल युद्ध' शुरू कर दिया। महाराज! आपके किसी अन्य शत्रु से आप का राज्य पराभव न हो, मात्र इसी हेतु से रक्षा करने के लिये आये हुए हम लोगोंने आप के इन सैनिकोंकी तरफसे कितने एक प्रहार भी सहन किये हैं। तथापि स्वामीका कार्य सुधारने के लिए कितनी एक मुसीबतें भी सहन करनी ही पड़ती हैं। जैसे कि पिता के कार्य में पुत्र, गुरु के कार्य में शिष्य, पति के कार्य में स्त्री, और स्वामोके कार्य में सेवक, अपने प्राणों को भी तृण समान गिनता है । “उस भाट के पूर्वोक्त भेद बचन सुन कर मृगध्वज राजा ने यद्यपि उसके बोलने में सत्यासत्य के निर्णय का भी संशय था तथापि चंद्रशेखर की दाक्षिण्यता से उस वक्त उसे सत्य हो मान लिया। दक्षता में, दाक्षिण्यता में, और गांभीर्यता में अग्रसर मृगध्वज राजा ने अपने पास आये हुए उस चंद्रशेखरराजा को कितना एक मान सन्मान भी
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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