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________________ श्राद्धविधि प्रकरण दिया। इसी में सजन पुरुषों की सजनता समाई है । इस के बाद लक्ष्मीवती कमलमाला को बड़े महोत्सव पूर्वक नगरप्रवेश कराया गया। मानो जिस प्रकार श्री कृष्ण लक्ष्मीको ही नगरमें स्वयं लाता हो, और जिस प्रकार अद्वितीय चंद्रकलाको महादेवजीने अपने भालस्थल पर स्थापन की उसी प्रकार कमलमाला को उचि. तता पूर्वक अपने राजसिंहासन पर अपने पास ही बैठाई । जैसे पुण्य ही पुत्रादिक की प्राप्ति का मुख्य कारण है और पुण्य ही संग्राम में राजा को जय की प्राप्ति कराता है, तथापि राजा ने सहायकारी निमित्त मानकर सैनिकों की कितनीक प्रशंसा की। एक दिन राजाको एक तापसने एक मंत्र लाकर दिया । राजाने भी बतलाई हुई विधि के अनुसार उस का जाप किया। उस मंत्र के प्रभावसे राजा की सब राणियों को एक एक पुत्र पैदा हुआ । क्योंकि ऐसे बहुत से कारण होते हैं कि, जिन से ऐसे कर्मों की सिद्धि हो सकती है। परंतु यद्यपि राजा की बड़ी प्यारी थी तथापि पतिपर द्रोह का विचार किया था इसीलिए उस पाप के कारण मात्र एक चंद्रवती राणी को ही पुत्र न हुआ। एकदिन मध्य रात्रिके समय किंचित् निद्रायमान कमलमाला महाराणीको किसी दिव्य प्रभाषसे ही एक स्वप्न देख ने में आया। तदनंतर रानी जाग कर प्रातःकाल राजाके पास आकर कहने लगी कि-हे प्राणनाथ ! आज मध्य रात्रि के व्यतीत होनेपर किंचित् निद्रायमान अवस्था में मैंने एक स्वप्न देखा है और स्वपमें ऐसा देखने में आया है कि, 'जिस तपोवन में मेरे पिता श्रीगांगील नामा महर्षि हैं उसमें रहे हुए प्रासादमें हमने प्रयाणके समय जिनके अन्तिम दर्शन किये थे उन ही प्रथम-तीर्थपति प्रभु के मुझे दर्शन हुए, उसवक्त उन्होंने मुझसे कहा कि हे कल्याणी । अभी तो तू इस नोते को लेजा और फिर किसी वक्त हम तुझे हंस देंगे। ऐसा कहकर प्रभुने मुझे हाथोहाथ सर्वाग सुन्दर दिव्य वस्तुके समान देदिप्यमान एक तोता समर्पण किया। उन प्रभुके हाथका प्रसाद प्राप्त कर सारे जगत की मानो ऐश्चर्यता प्राप्त की हो इसप्रकार अपने आप को मानती हुई और अत्यन्त प्रसन्न होती हुई मैं आनंद पूर्वक जाग गई । अचिंत्य और अकस्मात् मिले हुये कल्पवृक्ष के फल के समान हे प्राणनाथ ! इस सुस्वप्नका क्या फल होगा ? रानी का इस प्रकार वचन सुनकर अमृतके समान मीठो वाणीसे राजा स्वप्नका फल इसप्रकार कहने लगा कि हे प्रिये ! जिसतरह देव दर्शन अत्यन्त दुर्लभ होता है, वैसे ही ऐसे अत्युत्कृष्ट स्वप्न का देखना किसी भाग्योदय से ही प्राप्त होता है। ऐसा दिव्य स्वप्न देखने से दिव्यरूप और दिव्य स्वभाव वाले चंद्र और सूर्य के समान उदय को प्राप्त होते हुए तुझे अनुक्रमसे दो पुत्र पैदा होंगे। पक्षी के कुलमें तोता उत्तम है और राजहंस भी अत्युत्तम है, इन दोनोंकी तुझे स्वपमें प्राप्ति हुई है इसलिए इस स्वप्न के प्रभाव से क्षत्रियकुल में सर्वोत्कर्ष वाले हमें दो पुत्रों की प्राप्ति होगी। परमेश्वरने अपने हाथसे तुझे प्रसन्नता पूर्वक स्वप्नमें प्रसाद समर्पण किया है इससे उनके समान ही प्रतापी पुत्रकी प्राप्ति होगी, इसमें जरा भी संशय नहीं है । राजाके ऐसे बचन सुनकर सानंदवदना कमलमाला रानी हर्षित होकर राजाके बचनोंको हर्ष-पूर्वक स्वीकार करती है। उस रोज से कमलमाला राणी इस प्रकार गर्भको धारण करती है कि जैसे रत्नप्रभा पृथ्वी श्रेष्ट रत्नोंको धारण करती हैं और आकाश जैसे जगत् चक्षु सूर्यको धारण करता है। जिसप्रकार उत्तम रसके प्रयोगसे मेरुपर्वतकी पृथ्वीमें रहा हुआ कल्पवृक्ष का अंकुर प्रतिदिन
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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