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________________ ૨૪= श्राद्धविधि प्रकरणे उसमें जो आपको लाभ साथ ठहराव कर रखा था ) इस प्रकार झूठा व्यबहार चलाता है । यह बात चौथे पुत्रकी बहूको मालूम पड़ने से एक दफा उसने ससुरेजी को बुला कर कहा कि आपको ऐसा असत्य व्यापार करना उचित नहीं; शेठने जवाब दिया कि बेटी क्या किया जाय यह संसार ऐसा ही है । ऐसा किये बिना फायदा नहीं होता, उसके बिना निर्वाह नहीं चलता, भूखा क्या पाप नहीं करे ? बहू बोली"आप ऐसा मत बोलियेगा, जो व्यवहार शुद्धि है वही सर्व प्रकारके अर्थ साधन करने में समर्थ है। इसलिए शास्त्रमें लिखा है कि, न्यायसे वर्ताव करनेवाले यदि धर्मार्थी या द्रव्यार्थी हों तो उन्हें सत्यतासे सचमुच धर्म और की प्राप्त हुये बिना नहीं रहती इसमें किसी प्रकारकी भी शंका नहीं, इसलिए सत्यता से व्यापार कीजिये जिससे आपको लाभ हुए बिना न रहेगा। यदि इस बातमें आपको विश्वास न आता हो तो छह महीने तक इसकी परीक्षा कर देखिये कि इस वक्त जो आप व्यापार करते हैं होता है उससे अधिक लाभ सत्य व्यापारमें-व्यवहार शुद्धिसे होता है या नहीं। यदि आपको धनवृद्धि होनेकी परीक्षा हो और वह उचित है ऐसा मालूम हो तो फिर सदैव सत्यतासे व्यापार करना, अन्यथा आपकी मर्जी के अनुसार करना। इस तरह छोटी बहूके कहनेसे शेठने मंजूर करके वैसा ही व्यापार में सत्या चरण किया। सचमुच ही उसकी प्रमाणिकता से ग्राहकोंकी वृद्धि हुई, पहेँलेकी अपेक्षा अधिक माल खपने लगा और सुख पूर्वक निर्वाह होनेके उपरान्त कुछ बचने भी लगा । उसे छह महीने का हिसाब करनेसे एक पत्र प्रमाण ( ढाई रुपये भर) सुवर्णका लाभ हुवा। छोटी बहूके पास यह बात करनेसे वह कहने लगी कि इस न्यायोपार्जित वित्तसे किसी भी प्रकारकी हानि नहीं हो सकती । को कहीं डाल भी दिया जाय तो भी वह कहीं नहीं जा सकता। यह बात सुन कर सेठने आश्चर्य पाकर उस सुवर्ण पर लोहा जड़वा कर उसका एक सेर बनवाया। उस पर अपने नामका सिक्का लगाकर दूकान में उसे तोलनेके लिए रख छोड़ा। अब वे जहां तहां दुकान में रखड़ता पड़ा रहता है, परन्तु उसे लेनेकी किसी को बुद्धि न हुई फिर उस सेरकी परीक्षा करनेके लिए शेठने उठाकर उसे एक छोटे तालावमें डाल दिया दैवयोग उस सेर पर विकास लगी हुई होनेके कारण तलाबमें उसे किसी एक मच्छने लटक लिया। फिर कुछ दिन बाद वही मत्स्य किसो मछयारे द्वारा पकड़ा गया। उसे चीरते हुए उसके पेटमें से वह बाट सेर निकला। उस पर हेलाक शेठका नाम होनेसे मंछियारा उसे सेठ की दूकान पर आकर दे गया । इससे सेठको सचमुच ही सत्यके व्यापारसे होनेवाले लाभके विषय में चमत्कारी अनुभव हुवा। जिससे उसने अपनी दूकान पर अबसे सत्यतासे व्यापार चलानेकी प्रतिज्ञा की; वैसा करनेसे उसे बड़ा भारी लाभ हुवा। वह बड़ा श्रीमन्त हुवा, राज्यमान हुवा, धर्म पर रुचि लगनेसे उसने श्रावकके व्रत अंगीकार किये और सब लोगों में सत्य व्यापारी तया प्रसिद्ध हुवा। उसे देखकर दूसरे अनेक मनुष्य उसकी प्रमाणिकता का अनुकरण करने लगे। इस उपरोक्त दृष्टान्त पर लक्ष्य रखकर सत्यतासे ही व्यापार करनेमें महा लाभ होता है इस विचारसे कपटवर्ग व्यापारका सर्वथा त्याग करना योग्य है । दृष्टान्तके तौर पर यदि इस धन dex::--
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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