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________________ श्राद्धविधि मकर २४७ बाद चढ़े भावमें बेचने से कुछ दोष नहीं लगता, इससे उस द्रव्यका लाभ लेना उचित है । परन्तु इसके सिवाय किसी दूसरी तरहके व्यापारमें कपटवृत्ति द्वारा होनेवाले लाभको ग्रहण न करे यह आशय समझना । उपरोक्त आशयको दृढ़ करनेके लिए कहते हैं कि सुपारी वगैरह फल या किसी अन्य प्रकारके मालका क्षय होनेसे याने उस शाल उसकी कम फसल होनेसे या समय पर बाहर से वह माल न आ पहुंचने से यदि दुगुना तिगुना लाभ हो तो अच्छा परिणाम रखकर उस लाभको ग्रहण करे परन्तु यह विचार न करे कि अच्छा हुवा कि जो इस साल इस मालकी मौसम न हुई । ( इस प्रकार की अनुमोदना न करे क्योंकि ऐसी अनुमोदनासे पाप लगता है) एवं किसो दूसरेकी कुछ वस्तु गिर गई हो तथापि उसे ग्रहण न करे। उपरोक्त व्याज में या मालके लेने बेचनेमें देश कालकी अपेक्षासे अपने उचित ही लाभ ग्रहण करे परन्तु लोक निन्दा करें उस प्रकारका लाभ न उठावे । "असत्य तोल नापसे दोष" अधिक तोलसे लेकर कम तोलसे देना, अधिक नावसे लेकर, कम नापसे देना, श्रेष्ठ बानगी बतला कर खराब माल देना, अच्छे बुरे मालमें मिश्रण करना, किसीकी वस्तु लेकर उसको वापिस न देना, एक के आठ गुने या दस गुने करना, अघटित व्याज लेना, अघटित ब्याज देना, अघटित याने असत्य दस्तावेज लिखा लेना, किसीका कार्य करनेमें रिसबत लेना या देना, अघटित कर लगाना, खोटा घिसा हुवा ताम्बेका या सीसेका नांवा देना, किसीके लेन देन में भंग डालना, दूसरेके ग्राहकको बहकाना, अच्छा माल दिखला कर खराब माल देना, माल बेचनेकी जगह अन्धेरा रखकर माल दिखाते समय लोगोंको शाही वगैरह की दाग लगाकर अक्षर बिगाड़ना इत्यादि अकृत्य सर्वथा त्यागने चाहिए । कहा है कि विविध प्रकार के उपाय और छल प्रपंच करके जो दूसरोंको ठगता है वह महामोह का मित्र बन कर स्वयं ही स्वर्ग और मोक्ष सुखसे ठगा जाता है। फसाना, 1 यह न समझना कि निर्धन लोगोंका निर्वाह होना दुष्कर है, क्योंकि निर्वाह होना तो अपने अपने कर्मके स्वाधीन है । ( उपरोक्त न करने योग्य अकृत्योंके परित्याग से हमारा निर्वाह न होगा यह बिलकुल न समझना, क्योंकि निर्वाह तो अपने पुण्यसे ही होता है ) यदि व्यवहार शुद्धि हो तो उसकी दूकान पर बहुतसे ग्राहक आ सकनेसे बहुत ही लाभ होनेका सम्भव होता है । • " व्यवहार शुद्धि पर हेलाक का दृष्टान्त एक नगर में हेलाक नामक शेठ रहता था। उसे चार पुत्र थे । उन्हींके नाम पर तीन सेरी और त्रिपुष्कर, चार सेरी और पंच पुष्कर, ऐसे नाम स्थापन करके उनमें से किसीको बुलाना और किसीको गाली देना ऐसो २ संज्ञायें बान्ध रखी थीं कि ऐसे नापसे-कम नापसे तोलकर - नाप कर देना ऐसे. नापसे अधिक नापसे तोल कर, नाप कर दूसरेसे लेना । ( उसने ऐसा सब दूकान वालोंके
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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