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________________ ३ श्राद्ध विधि प्रकरण भाग्यधन्या कन्या के योग्य वर कहांसे मिलेगा ? इतने में ही इस आम्र के वृक्ष पर बैठे हुये एक शुकराज ने मुझे कहा कि ऋषिवर ! कन्याके वरके लिये तू व्यर्थ चिन्ता न कर, ऋतुध्वज राजा के पुत्र मृगध्वज राजा को मैं इस जिनेश्वर के मंदिरमें लाऊंगा। कल्पवल्लीके योग्यतो कल्पवृक्ष ही होता है, वैसे ही इस कन्याके योग्य सर्वोत्कृष्ट वर वही है, इस लिये तूं इस विषय में बिलकुल चिन्ता न कर। यों कह कर वह शुकराज यहांसे उड़ गया। तदनंतर थोड़े ही समय में वह आप को यहां ले आया और उस के बचन पर से ही मैंने आपके साथ अपनी कन्या का पाणीग्रहण कराया है, बाकी इससे अधिक मैं और कुछ नहीं जानता। ऋषि. जी के बोल चुकने पर राजा जब सोच विचार में पड़ा था उसीवक्त तुरन्त वही तोता आनकी एक डाल पर बैठा नजर पड़ा और बोला कि राजन् ! चल चल क्यों चिन्तामें पड़ा है ? मेरे पीछे पीछे चला आ। हे राजन् ! यद्यपि मैं एक पक्षी हूं तथापि मैं अपने आश्रितोंको नाराज करनेमें खुश नहीं हूं। जैसे शशांक (चन्द्रमा) अपने आश्रित शशक (खरगोस) को थोड़े समयके लिये भी दूर नहीं करता वैसे ही मैं भी यदि कोई साधारण मनुष्य मेरे आश्रयमें आया हो तो उसे निराश्रित नहीं करता, तब फिर तेरे जैसे महान् पुरुषको कैसे छोड़ सकता हूं ? हे आर्य जनोंमें अग्रेसरी धर्मधुरन्धर राजेन्द्र ? यद्यपि मैं लघु प्राणी हूं तथापि मैं आपको भूल न सकूँगा। बैसे ही आप भी मुझे तुच्छ पुरुष के समान भूल न जाना। पूर्व परिचित दिव्य शुकराज की मीठी मधुर बाणी को सुनकर राजा साश्चर्य ऋषिसज को नमस्कार कर और उसकी आज्ञा .कर राणी कमलमाला सहित घोड़े पर चढ़ कर उड़ते हुए शुकराज के पीछे चल पड़ा। - त्वरित गतिसे शुकराज के पीछे घोडा लगाये राजा थोड़े ही समयमें ऐसे प्रदेश में आपहुंचा कि जहां मृगध्वज राजाके क्षितिप्रतिष्ठित नगरके गगनचुम्बी प्रासाद देख पड़ते थे। जब राजा को अपना नगर दिखाई देने लगा तब शुकराज मार्गस्थ एक वृक्ष की डाल पर जा बैठा। राजा यह देख कर चिन्तातुर हो उसे आग्रह पूर्वक कहने लगा कि हे शुकराज यद्यपि नगर का किला और राजमहालय आदि बड़े २ प्रासाद यहांसे देख पड़ते हैं तथापि शहर अभी बहुत दूर है अतः थके हुए मनुष्यके समान तू यहां ही क्यों बैठ गया ? शुकराजने प्रत्युत्तर दिया कि राजन् ! समझदार मनुष्योंकी सर्व प्रवृत्तियां सार्थक ही होती हैं इसलिये आगे न जाकर यहां ही ठहरनेका मेरे लिये एक असाधारण कारण हैं। बस इसी से मैं आगे चलना उचित नहीं समझता। यह सुनकर राजा को कुछ घबराहट पैदा हुई और वह सत्वर बोला-क्या असाधारण कारण ! ऐसा क्या कारण है सो मुझे सुनाने की कृषा कीजिये शुकराज ? तोता बोला अच्छा यदि सुनना ही चाहते हो तो सुनो-चंद्रपुरी नगरी के राजा चंद्रशेखर की बहिन चंद्रवती नामकी जो तुम्हारी प्यारेमें प्यारी रानी है वह तुम्हारे महल में तुम्हारे विपत्तिका जासूस हैं । ऊपर से वह आप को कृत्रिम प्रेम बतलाती है परन्तु अन्दर से आप की तरफ उसका अभिप्राय अच्छा नहीं है । आपके लिये वह रानी गोमुखी देख पड़ती हुई भी व्याघ्रमुखी है। जब तुम कमलमाला को प्राप्त करनेके लिए मेरे पीछे पीछे चले गये थे उसवक उसने आप पर रुष्टमान होकर याने अवसर देख कर अपने भाई चन्द्रशेखर को तुम्हारा राज्य स्वाधीन कर लेनेका मोका मालूम कर दिया। क्योंकि अपने इच्छित कार्यको पूरा करनेके लिये स्त्रियोंमें छल कपटादि अतुल बल होता है। अनायास प्राप्त होनेवाली राज्यस
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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