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________________ answwwww श्राद्धविधि प्रकरण इह लोइ अंमिकज्जे । सबार भेण जहजणो जणई ॥ तहजह लख्खंसेणवि । धम्मे ता किं न पज्जत।। इस लोकमें लौकिक कार्यके लिए लोक जितना उद्यम करके प्रयास करते हैं उसका लाखका श भी धर्ममें उद्यम करते हों तो उन्हें क्या नहीं मिल सकता ? इसलिये धनके उद्यमसे भी पहले धमके उद्यमकी अत्यन्त आवश्यकता हैं। इसलिए यह बात ध्यानमें रखकर व्यापारादिमें धर्मको हार कर व्यवहार न करना। "आजीविका चलानेके सात उपाय" एक व्यापारसे; दूसरा विद्यासे, तीसरा खेतीसे, चौथा पशुवोंके पालनेसे, पांचवां शिल्पसे, (सुतार चित्रकारी ) आदिसे छठां नौकरीसे, और सातवां भिक्षासे,। १ ब्यापार,-घी, तेल, कपास, सूत, वस्त्र, धातु, जवाहरात, मोती, लेनदेन, जहाज चलाना वगैरह व्यापारके अनेक प्रकारके भेद हैं। यदि उनके भेद प्रभेदको गणना की जाय तो उनका पार ही नहीं आ सकता। लौकिकमें किसी अन्यमें तीनसौ साठ क्रयाने गिना कर व्यापार गिनाये हैं, परन्तु भेद प्रभेद गिनने से उससे भी अधिक भेद होते हैं। २ विद्यासे-वैद्य, ज्योतिषी, पौराणिक, पण्डित, वकालत, मंत्र तंत्र, मुनीमगिरी, इत्यादि । ३ खेतीसे-किसान, जमीनदार वगैरह (खेत जोतकर धान्य पैदा करनेवाले) इत्यादि। ४ पशुपाल-गोपाल, गड़रिया, घौड़ेवाला, ऊंटवाला, वगैरह २ । ५ शिल्पसे-वित्रकार, सुनार, छापनेवाला, दरजी, कारीगर का काम करनेवाला इत्यादि । ६ नौकरी तो प्रसिद्ध ही है। ७ भिक्षा-अपमान पूर्वक मांग खाना। ____ ब्याजके और लेन देनके ब्यापारी भी व्यापारियोंमें ही गिने जाते हैं । विद्या भी एक प्रकारकी नहीं है। औषध, रसायन, धातुमारण, चूरण, अंजन, वास्तुशास्त्र का ज्ञान, शकुन शास्त्रका शान, निमित्त शास्त्र, सामु. द्रिक शास्त्र, मुहूर्त शास्त्र, धर्मशास्त्र, व्याकरण शास्त्र, अंक शास्त्र वगैरह अनेक प्रकारकी विद्यायें हैं।.... यदि धनवान बीमार होवे तो पनसारी तथा वैद्यको उससे अधिक लाभ हो; तथापि वैद्यक और पन्सारीका ब्यापार प्रायः दुर्ध्यानका संभव होनेसे विशेषतः लाभकारी नहीं है (बहुतसे मनुष्य बीमार पड़ें तो ठीक हो ) प्रायः उसमें इस प्रकारका दुर्ध्यान हुये विना नहीं रहता। तथा वैद्यका बहुमान भी हो। कहा है कि: रोगीणां सुहृदो वैद्याः । प्रभूणां चाटुकारिणः ॥ मुनयो दुःखदग्धानां । गणकाः क्षीणसंपदा ॥ रोगीको वैद्य, श्रीमन्तके लिये उसके कथनानुसार चलने वाला या मिष्ट वचन बोलने वाला, दुःखदग्ध के लिए मुनि और निधन पुरुषोंके लिए ज्योतिषी मित्र समान गिने जाते हैं। १२। । २७
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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