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________________ ننننننننننم श्राद्धविधि प्रकरण हे खामिन् ! आपको संयम यात्रा सुखसे वर्तती है ? और गत रात्रि निर्वाथ सुखसे वातौं । भापक सरीरमें कुछ पीड़ा तो नहीं ? सपके शरीरमें कुछ न्याधि तो नहीं है ? किसी चैद्य या शोषकादिक का आयोजन है। आज आपको कुछ आहारके विषयों पथ्य रखने जैसा है ? ऐसे प्रश्नके करनेसे महा निर्जरा होती है। कहा है कि,: अभिगमनःवादम मसोम। पड्पुिच्छयोग साहूणं। चिर संचि अभिम कम्पं । खणेण विरसावण मुवेई ।। गुरुके सामने जाना, बन्दन करना, नमस्कार करना, सुख साता पूछना, इतने काम करनेसे बहुत वर्षोंके किये हुवे कर्म भी एक क्षण वामें विखर जाते हैं। ____ गुरुको पहली बन्दना बतलाये मुबब साधारण तया किये वाद विशेषतासे करना । जैसे कि "सुहम् सुहदेवसि सुख, तप, निराबाध." इत्यादि बोलकर साता पूछनेसे विशेष लाभ होता है। यह प्रश्न गुरुका सम्यक् स्वरूप जाननेके लिए है तथा उसके उपायकी योजना करने वाले श्रावकके लिए है। फिर नमस्कार करके "इच्छकारी भगवान् पसाय करी "फासुए एसणिज्जे प्रसण पारण खाइम साइमेण वध्य पडिमगह कंबल पायपुच्छणेणं पाडिहारिन पीठफलगसिज्जा संथाएगां पोसह भेसज्जे भयवं अणुग्गहो काययो" है इच्छकारी भगवान् ! मुझपर दया करके सूजता आहार, पानी, खादिम,-सुकड़ी वगैरह, खादिममुखवास वगैरह, वस्त्र, पात्र, कम्बल, कटासना, प्रातिहार्य, याने सर्व कार्यमें उपयोग करने योग्य चौकी, पीछे रखनेका पाटिया, शय्या, संथारा शय्याकी अपेक्षा कुछ छोटा औषध, वेसड़, इत्यादि ग्रहण करके हे भगवान् मुझ पर अनुग्रह करो! इस प्रकार प्रगट तया निमन्त्रण करना। ऐसी निमन्त्रणा वर्तमान कालमें श्रावक बृहत् बन्दन किये वाद करते हैं, परन्तु जिसने गुरुके साथ प्रतिक्रमण किया हो वह तो सूर्य उदय हुये बाद जब अपने घर जाय तब निमन्त्रण करे। जिसे गुरुके साथ प्रतिक्रमण करनेका योग न बना हो उसे जब गुरु बन्दन करनेके लिए आनेका बन सके उस वक्त उपरोक मुजब निमन्त्रण करना । मन्दिरमें जिन पूजा करके नैवेद्य चढ़ाकर घर भोजन करने जानेके अवसर पर फिरसे गुरुके पास उपाश्रय आकर पूर्वोक निमन्त्रण करना । ऐसा श्राद्ध दिन कृत्यमें लिखा है। फिर यथावसर पर यदि चिकित्सा रोगकी परीक्षा करना हो तो वैद्यादिक का उपयोग करादे । औषधादिक वोरावे, ज्यों योग्य हो त्यों पथ्याद्रिक की-जोम्बाई करादे, जो २ कार्य हो सो फरादे । इस लिए कहा है कि हा आहाराई । योसह वथ्याई जस्स जं जोगी। णाणाईण गुणाणां । उवठं भणदेउ साहू ॥ शानादि गुण वाले साधुओंको आश्रय कराकर आहारादि औषध स्वादिक वगैरह जो २ जैसे योग्य लगे वैसे दान देना। जा अपने घर साधु बोहरने यावे लव हमेशह उसके योग्य जो २ लार्थ सैयार हो सो नाम ले लेकर
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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