SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०३ . "हा श्राद्ध विधि प्रकरणा पाहराये । यदि ऐसा न करे तो उपाश्रय, निमन्त्रण कर आयेका भंग होता है; और नाम लेकर वोहरानेसे मी यदि साधु न वोहर तो दूसरे शालमें कह गये हैं: - मनसापि भवेत्पुण्यं । वचसा च विशेषतः। कर्तव्ये नापि तद्योगे स्वर्गद्र मो भूत्फले ग्रहि ॥ मनसे भी पुण्य होता है, तथा वयनसे निमन्त्रण करनेसे अधिक लाभ होता है, और कायासे उसकी जोगवाई प्राप्त करा देनेसे भी पुण्य होता है, इसलिये दान कल्पवृक्ष के समान फलदायक है। यदि गुरुको निमंत्रण न करे तो श्रावकके घरमें वह पदार्थ नजरसे देखते हुए भी साधु उसे लोभी समझ कर नहीं यावता, इसलिए निमन्त्रण न करनेसे बड़ी हानि होती है। यदि साधुको प्रतिदिन निमंत्रण करने पर भी वह अपने घर वहरनेको न आवे तथापि उससे पुण्य ही होता है । तथा भावकी अधिकता से मधिक पुण्य होता है। “दान निमन्त्रणा पर जीर्ण सेठका दृष्टान्त" जैसे विशाला नगरमें छमस्थ अवस्था में चार महीनेके उपवास धारण कर काउसग्ग ध्यानमें खड़े हुए भगवान महावीर स्वामीको प्रति दिन पारनेकी निमन्त्रणा करने वाला जीर्ण सेठ चातुर्मासिक पारनेमें भाज तो जरूर ही भगवान पारना करेंगे ऐसी धारना करके बहुत सी निमन्त्रणा कर घर माके आंगनमें बैठ ध्यान करने लगा कि अहो ! मैं धन्य हूं ! आज मेरे घर भगवान पधारगे, पारना करके मुझे कृतार्थ करेंगे, इत्यादि भावना भावसे ही उसने अच्युत स्वर्ग बारहव देवलोकका आयुष्य बांधा और पारण तो प्रभुने मिथ्याइष्टि किसी पूर्ण सेठके घर भिक्षाचार की रीतिसे दासीके हाथसे दिलाये हुए उबाले हुये उड़दोंसे किया। वहां पंच दिव्य प्रगट हुए, इतना ही मात्र उसे लाभ हुवा। बाकी उस समय यदि जीर्ण सेठ देवन्दुमी का शब्द न सुनवा तो उसे केवलज्ञान उत्पन्न होता ऐसा झानियोंने कहा है। इसलिये भावनासे अधिकतर फल की प्राप्ति होती है। .. माहारादिक घहराने पर शालिभद्र का दृष्टान्त तथा औषधके दान पर महावीर स्वामी को भौषध देनेसे तीर्थकर गोत्र बांधने वाली रेवती श्राविका का दृष्टान्त प्रसिद्ध होनेसे यहां पर ग्रन्थ वृद्धिके भयसे नहीं लिखा। "ग्लान साधुकी वैयावञ्च-सेवा' ग्लाम वीमार साधुकी सेवा करने में महालाभ है । इसलिए आगममें महा है कि,: · गोमम्मा जे गिलाणाणं पडिचरई सेमं दसरमेण पडिई वजई। .. जेयं दसरोण पडिबज्जई सेमिलाणाणं पडिचरई ॥ पाणा करण सारं खु अरहंताणं देंसण। . हे गौतम! जो ग्लान साधुकी सेवा करतो है वह मेरे दर्शनको अंगीकार करता है । वह ग्लान-बीमाकीर सेवा किये बिना रहे ही नहीं। अहंतके दर्शनका सार यह है कि जिन-आमा पालन करना।
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy