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________________ AAAAAAY ( ८ ) कई एक आवश्यकीय कार्यों के कारण मुझे पूना पाना पड़ा फिर तो भव। जन्तुओं ने मेरे प्रभावका लाभ उठा लिया। इधर प्रेमजी भाई भी देशमें चले गये थे। अब राणाजी को चढ़ वनी। विचारे भोले भाले जयपुर वाले उस मैनेजिंग दृष्टीके मेरे विरुद्ध कान भर दिये गये एवं आठ मास वक परिश्रम करके याने बामा के देहात में भूख प्यास सह कर किये हुये मेरे अहिंसा प्रचार प्रशस्त कार्यको लोगोंके समक्ष अप्रशस्त रूपमें समझाया गया, बस फिर क्या था ? विचार शक्तिका प्रभाव होनेके कारण बिना पैदोके लाटेके समान तो हमारा धार्मिक समाज है ही। ग्रन्थमें सहायता देना नामंजूर होगया, भेजी हुई रकम कलकत्ता से वापिस मंगवा ली गई ग्रन्थ छपना बन्द पड़ा। इस समय हाटकी बीमारी से पीड़ित हो जिन्दगी की खतरनाक हालत में मैं डाक्टरकी सम्मति से देवलाली नासिक में पड़ा था। छपता हुआ ग्रन्थ बन्द होनाने पर डेढ महीने बाद कुछ अनारोग्य अवस्था में ही मुझे कलकत्ता आना पड़ा। मैं चाहता था कि कोई व्यक्ति इसके छपानेका कार्य भार ले ले तो मैं इससे निश्चिन्त हो अपने दूसरे कर्तव्य कार्यमें प्रवृत्त रहू, इसलिये मैं दो चार श्रीमन्त श्रावकों से मिलकर वैसी कोशिश की। परन्तु दाल न गलने पर मैंने कलकत्ता में ग्राहक बना २ कर इस कामको चालू कराया। अपरिचित व्यक्तियों को ग्राहक बना कर इतने बड़े ग्रन्थका खचे पूरा करनेमें कितना त्रास होता है इसका अनुभव मेरे सिवा कौन कर सकता है ? तथापि कार्य करनेकी दृढ़ भावना वाले निराश हो स्वकर्तव्य से परान्मुख नहीं होते । अन्तमें गुरुदेव की कृपासे मैं कृतकार्य हो आप सज्जनोंके सन्मुख इस ग्रन्थको सुन्दर रूपमें रख सका। मित्रवर्य यति श्री मनसाचन्द्रजी और मद्रास निवासी श्रावक श्री पुखराजमल जी की प्रेरणा से मैंने यह श्राद्ध विधि नामक ग्रन्थ श्रीयुत चीमनलाल साकलचन्द जी मारफतियों द्वारा संस्कृत से गुजर भाषान्तर परसे हिन्दी अनुवाद किया है अतः मैं उन्हें धन्यवाद देता हूँ। प्रथम इस ग्रन्थमें सुज्ञ श्रीमान् बाबू बहादुरसिंह जी सिंघीकी प्रोरसे सहायता मिली है इसलिये वे भी धन्यवाद के पात्र हैं। कलकत्ता में मेरे कार्यमें श्रीमान् बाबु पूर्णचन्द्रजी नहार बी० ए० एल० एल० बी० वकील तथा यति श्रीयुत सूर्यमलजी तथा वयोवृद्ध पण्डित वर्य श्रीमान् बाबा हेमचन्द्रजी महाराज एवं उनके सुयोग्य शिष्य श्रीयुत यतिवर्ष कर्मचन्द्रनी तथा कनकचन्द्रजी आदिसे मुझे बड़ी सरलता प्राप्त हुई है अतः आप सब सज्जनों को मैं साभार धन्यवाद देता हूं। माघ कृष्ण दशमी, कलकत्ता। विनीत-तिलक विजय पंजाबी ..
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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