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________________ ॐ श्राद्ध विधि प्रकरण | ( अर्थात् श्रावक विधि ) टीका मंगलाचरण । अर्हत्सिद्धगणींद्रवाचकमुनिप्रष्ठाः प्रतिष्ठास्पदम्, पंच श्रीपरमेष्ठिनः प्रददतां प्रोच्चैर्गरिष्ठात्मतां । द्वैधान पंचसुपर्वणां शिखरिणः प्रोद्दाममाहात्म्यतश्वेतचिंतितदानतश्च कृतिनां ये स्मारयंत्यन्वहम् ॥ १ ॥ अर्थ- जो पुण्यवन्त प्राणियों को अपने प्रबल प्रभाव से और मनवांछित देने से निरंतर स्मरण कराता है, दो प्रकार के पांच भेद के देवों में शिरोमणि भाव को धारन करता है और जिस में अहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और मुनि ये पांचों मुख्य हैं वह वाह्याभ्यन्तर शोभावान् पंच परमेष्ठी केवलज्ञानादिक प्राप्त करानेवाली आत्मगुणों की स्थिरता की पदवी को समर्पण करो । श्रीवीरं सगणघरं प्रणिपत्य श्रुतगिरिं च सुगुरुश्च । विवृणोमि स्वोपज्ञं श्राद्धविधि प्रकरणं किंचित् ॥ २ ॥ अर्थ —– गणधर सहित ज्ञान दर्शन और चारित्ररूप लक्ष्मी के धारक श्री वीर परमात्मा, तथा सरस्वती और को नमस्कार कर के अपने रचे हुवें श्राद्धविधि प्रकरण को कुछ विस्तार से कथन करता हूं ॥ सुगुरु युगवरतपागणाधिप, पूज्य श्रीसोमसुन्दर गुरूणाम् । वचनादधिगततत्वः, सत्वहितार्थं प्रवर्तेऽहम् ॥ ३ ॥ अर्थ - तपगच्छ के नायक युगप्रधान श्री सोमसुन्दर गुरु के वचन से तत्व प्राप्त कर के भव्य प्राणियों के बोध के लिये यह ग्रन्थरचना - विवेचना की प्रवृत्ति करता हूं ॥
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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