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________________ ( ७ ) निवेदन 9999 REGE इस ग्रन्थका अनुवाद कार्य तो दो वर्ष पूर्व ही समाप्त हो चुका था । संवत् १९८३ के क्षेत्र मासमें प्रारम्भ कर जेठपास तक इस महान् ग्रन्थका भाषान्तर निर्विघ्नतया पूरण होगया था, परन्तु इतने बड़े ग्रन्थ को पाने के लिये आर्थिक साधन के अभाव से मैं इसे शीघ्र प्रकाशित न कर सका । कुछ दिनों के बाद साधन संपादन कर लेने पर भी मुझे इसके प्रकाशन में कई एक भव्य जन्तुओं के कारण विघ्नोंका सामना करना पड़ा । ग्रन्थका अनुवाद किये चारेक महीने बाद मैं अहिंसा प्रचारार्थ रंगून गया, वहां पर सज्जन श्रावसहाय एवं एक विद्वान बौद्ध फुगी - साधुको सहाय से देहात तक में घूम कर करीब ढाई हजार दुष्टों को मांसाहार एवं पेय सुरापान छुड़वाया। जब देहात में जाना न बनता था तब कितने एक सज्जनों के आग्रह से रंगून में जैन जनता को एक घंटा व्याख्यान सुनाता था । इससे तत्रस्थ विचारशील जैन समाज का मुझ पर कुछ प्रम होगया, परन्तु एक दो व्यक्तियों को मेरा कार्यार्थ रेलवे तथा जहाज वगैरह से प्रवास करना आदि नूतन आचार विचार बड़ा ही खटकता था । संघ अग्रगण्य श्रीयुत प्रेमजी भाई जो मेरी स्थापन की हुई वहांकी जीवदया कमेटी के मानद मन्त्री थे एक दिन उन्होंने मुझसे कहा कि शायद मुझे देश में जाना पडे, यदि पीछे आपको कुछ की जरूरत हो तो फरमावें । मैंने समय देख कर कहा कि मुझे मेरे निजी कार्यके लिये द्रव्य की कोई आवश्यकता नहीं है परन्तु मैने श्राद्धविधि नामक श्रावकों के आचार बिचार सम्बन्धी एक बडे ग्रन्थका भाषान्तर किया है और उसके छापने में करीब तीनेक हजार का खर्च होगा, सो मेरी इच्छा है कि यह ग्रन्थ किसी प्रकार प्रकाशित होजाय । प्रेमजी भाई ने कहा कि यहां के संघमें ज्ञान खातेका द्रव्य इकट्ठा हुआ पड़ा है सो हम संघकी ओरसे इस ग्रन्थको छपवा देंगे। उन्होंने वैसा प्रयत्न किया भी सही । एक दिन जब संघकी मिटींग किसी अन्य कार्यार्थ हुई तब उन्होंने यह बात भी संव समक्ष रख दी। संघकी तरफ से यह बात मंजूर होती जान एक दो व्यक्ति जो मेरे आचार विचार से बिरोध रखते थे हाथ पैर पीटने लगे। तथापि विशेष सम्मति से ररंगून जैन संघकी ओरसे इस ग्रन्थ को छपानेका निश्चय होगया और पांच सौ रु० कलकत्ता जहां ग्रन्थ छपना था नरोत्तम भाई जेठा भाई पर भेजवा दिये गये ग्रन्थ छपना शुरू हो गया, यह बात मेरे विरोधियों को बड़ी अखरती थी ।
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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