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________________ तो आत्माके अस्तित्वको भी स्वीकार नहीं करते हैं, उनसे अध्यास्म ग्रन्थ वादविवाद करना नहीं चाहता है । अध्यात्मग्रन्थ आत्माके आस्तत्वको स्वीकार करके ही आगे बढ़ता है । इसके सम्बन्धका वादविवाद करनेका योग्य क्षेत्र तर्क-न्यायके ग्रन्थ हैं । आत्माके नास्तित्वको माननेसे कितने हेत्वाभास होते हैं, कुदरतके कितने आविर्भाव इससे खुलासा हुए बिना हो पड़े रहते हैं-श्रादि बातों पर तकशास्त्रकी दलीलपुरःसर विवाद न्यायग्रन्थोंमें चलता है। यह ग्रन्थ अध्यात्मका हो होनेसे इसमें भी आत्माके अस्तित्वको स्वीकार करके ही चलनेकी रीतिका अनुकरण किया गया है । आत्मघाद इतना लम्बा है कि यदि इसका उपोद्घातमें वर्णन किया जाय तो ग्रन्थगौरव बहुत हो जाता है, इसलिये इसको छोड़ देना पड़ता है। यहां तो केवल मात्र एक ही बातको ध्यानमें, रखनेकी आवश्यकता है और वह यह है कि आत्मा बिना हम न गति कर सकते हैं, न बोल सकते है और न शुभाशुभ फलोंका अनुभव ही कर सकते हैं। अलग पड़े पत्थरमें अथवा शुष्क काष्ठमें और प्राणियों में लग्नी सम्बन्धी जो मिलता है-वह भी एक मात्र आत्माकी अनुपस्थिति और उपस्थिति ही के कारणभूत है । इस गूढ विषयमें अध्यात्मग्रन्थ प्रवेश नहीं कर सकते हैं, कारण कि ऐसा करनेकी उनको आवश्यकता भी नहीं होती है। अपनी निर्मित हदको लांघ कर आगे बढ़ना यह व्यर्थ कालक्षेप हैं । आत्मवाद समझने योग्य है; तर्कशास्त्रकी रुचिवालोंको इसे न्यायके ग्रन्थोंसे जान लेना चाहिये। अध्यात्मके ग्रन्थोंमें ऊपर लिखित मुख्य विषयोंपर विस्तारसे अथवा संक्षेपसे उल्लेख किया गया होता है और विषयकी योग्यताको देख कर उसकी हद् बांधी हुई होती हैं। इन सर्व विषयोंका उद्देश बहुधा आत्मा और पुद्गलका सम्बन्ध और भेद बतानेका होता हैं । इसमें पुद्गल द्रव्यका स्वरूप, कर्मप्रकृतिका स्वरूप, कम वर्गणाका स्वरूप, उसके बंधादि चतुष्टय ( बंध, उदय, उदीरणा और सत्ता), उसकी पाठ मूल और एक सो अहावन उत्तरप्रकृतियें, उनका भिन्न भिन्न गुणस्थानोंमें न्यूनाधिकपन-बढ़ना घटनापन, कर्मका और आत्माका सम्बन्ध, उदय क्रियाके समय जीवको होनेवाला क्लेश, भिन्न भिन्न प्रकारके सुखदुःखके कारण, मोहनीय आदि कर्मोका स्वरूप, उनकी प्रेरणासे
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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