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________________ साथसे मिट्टी अलग करदी जाती है, तपा कर साफ किया जाता है, पासा पाडा जाता है तब भी उसमें स्वर्णत्व मौजुद ही रहता है । उसीप्रकार आत्मामें भी उसका शुद्ध आत्मत्व तीनों कालमें रहता है, परन्तु वह अपूर्व वीर्यस्फूरणासे ही प्रगट हो सकता है । जहाँतक प्रगट न हो तबतक उसको खानमें रहे स्वर्णके समान समझना चाहिये । इस जीवका शुद्ध स्वरूप वह सब कर्मोसे मुक्त होता है तब प्रगट होता है, यह दशा मोक्षदशा कहलाती है । इस स्थिति में जीवका मूल स्वभाव - अनन्तज्ञान, दर्शन, चारित्रादि अनन्त गुण प्रगट हो जाते हैं । इस स्थितिको एक वक्त प्राप्त करलेने के पश्चात् उसमें से किसीका पतन नहीं होता है, कर्मके साथ फिरसे सम्बन्ध नही होता है और संसारके दुःख फिरसे नही भोगने पड़ते हैं; कारण कि कारणका आत्यंतिक नाश हुआ होनेसे फिरसे संसार परिभ्रमणरूप कार्य्य निष्पन्न हो हो नही सकता है । आत्माको निगोद अवस्था में जो दुःख अव्यक्तपनसे भोगने पड़ते हैं और नारकी तथा तिर्यच गतिमें व्यक्तपनसे जो दुःख भोगने पड़ते हैं, उनके साथ यदि मोक्षमें जो अनन्त अव्याबाध सुख प्राप्त होता है उसकी समानता की जाय तो मोक्षकी महत्ता सहज हो में समझ में आ सकती है । आत्मा विकास इसप्रकार होता है । इस आत्माके सम्बन्धी ज्ञानको प्राप्त करना, उसके नित्यत्व, अनित्यत्व, आदि धर्मोका विचार करना, उसके गुणोंको समझना, उसके और पुद्गल के सम्बन्धको विचारना, पुद्अध्यास्म शास्त्रका गल और आत्मामें बाह्य दृष्टिसे मालूम होनेवाले अभेद अथवा ऐकी भावको समझना, उसके मूल स्वरूपको यथास्थित प्राकारमें समझना, उसके सम्बन्ध अनित्यत्वको विचारना, जीवका और अन्य सगे सम्ब न्धियोंके सम्बन्धको विचारना, उसके अनित्यपनको समझना, घर, पैसा और दूसरी पौद्गलिक वस्तुष्योंके साथके सम्बन्धका विचार करना, आदि आदि अनेक विषयोंका समावेश अध्यात्मशास्त्र में हो जाता है । सारान्शमें कहा जाय तो आत्मा सम्बन्धी सीधा विचार करनेका स्थान अध्यात्मशास्त्र है । यह द्रव्यानुयोगके पेटेका विषय है, जैसा कि हम पहिले लिख चुके हैं। कितने ही चार्वाक • साध्य
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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