SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૨૮૮ ओर देखना, कटाक्ष करना ये चचुरिन्द्रियके विषय हैं और वैश्या तथा गवैया आदिके गायन, वायलीन, हारमोनियम, सितार वा बेण्ड आदि वाजित्रों के मधुरस्वर श्रवण करना से श्रोत्रेन्द्रियके विषय हैं । ये पांच इन्द्रियाँ जीवको बहुत दुःख देती हैं । इस अधिकार में इसके सम्बन्धका ही विवेचन किया गया है । प्रमाद पांच प्रकारके हैं: I J मज्जं विसयकसाया, निद्दा विकहा य पंचमी भणिया । ए ए पंच पमाया, जीवं पाडंति संसारे ॥ १ मद ( आठ प्रकार के हैं:-तप, श्रुत, बल, ऐश्वर्य, जाति कुल, लाभ, रूप ) २ विषय ( पांच इन्द्रियोंके २३ विषय हैं ) ३ कषाय ( क्रोध, मान, माया और लोभ । ये प्रत्येक चार-चार प्रकार के होने से सोलह भेद होते हैं ) ४ विकथा ( राजकथा, देशकथा, स्त्रीकथा और भोजनकथा ) ५ निद्रा ( निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला, स्त्यानर्द्धि ) | अथवा प्रमाद आठ प्रकारके हैं । पमा य मुणिंदेहिं, भणिओ अभेयत्र । अन्नाणं संसओ चेव, मिच्छानाणं तहेव य ॥ रागो दोसो महभंसो, धम्मंमि य श्रणायरो | जोगाएं दुप्पणिहाणं, अट्टहा वज्जियब्बओ ॥ .
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy