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________________ अथ षष्ठो विषयप्रमादत्यागाधिकारः ANTA चवे द्वारमें शरीरका मोह कम करनेको कहा गया था और उसीप्रकार ममत्वके मूख्य कारणभूत खी, धन, पुत्र और शरीर परके ममत्वको त्याग करनेकी व्याख्या पूर्ण की गई। ये सब, बाह्य ममत्व हैं। इनके त्याग करनेके पश्चात् आन्तरिक ममत्वका भी त्याग करना चाहिये अर्थात् विषयोंपरसे मन हटाना चाहिये और प्रमाद न रखना चाहिये । 'प्रमाद ' शब्दके दो अर्थ होते हैं । एक अर्थ आलस्य है किन्तु यह एक सामान्य अर्थ है । जैन परिभाषामें प्रमाद शब्दके अन्दर अनेकों वस्तुओंका समावेश होता है । प्रमाद शब्दमें विषयका भी समावेश होता है और इसकी ओर विशेष ध्यान खिंचनेकी आवश्यकता होनेसे इस अधिकारमें विशेषतया इसका ही वर्णन किया गया है । विषय पांच प्रकारके हैंस्त्रीसंयोग, तैलमर्दन, बावनाचंदनादि विलेपन, स्नान, उद्वर्तनादि स्पर्शेन्द्रियके विषय हैं; मिट्टे पदार्थ खाना, आहारमें मस्त होना और नये नये स्वाद उत्पन्न करना ये रसनेन्द्रियके विषय हैं; पुष्प, इत्तरकी सुगन्ध लेना यह घ्राणेन्द्रियके विषय हैं; परस्त्रीकी
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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