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________________ है अथवा भविष्यमें विशेष ध्यान देकर काम करनेको बाध्य किया जाता है। इस शरीरके बारेमे भी उसींप्रकार विचार करनेकी आवश्यकता है । इस वर्तमान समयसे सम्बन्ध रखनेवाली एक और दूसरी खास विचारने योग्य बात यहां बतादेना अत्यावश्यक जान पड़ती है। खराब से खराब वस्तुको भी मिर्चमशालेसे उत्तम दिखनेवाली बनाकर होटलमें बेचनेवाला तो बेचता ही है, किन्तु वह स्वास्थ्यकी घातक है इसलिये शारीरिक नियमको जाननेवालोंको उसका त्याग करदेना चाहिये । इसके त्याग करनेके दूसरे भी अनेकों कारण हैं, जिसके लिये अधिक लिखने और विवेचन करनेकी आवश्यकता यहाँ उचित प्रतीत नहीं होती है । उसके उपरान्त भंग पीना, सोडा-लेमन-जींजर आदि और अति सीमा रहित हुए हुओंके सम्बन्धमें सुरापान आदिका एकदम त्याग करदेना योग्य है । शरीरसे जो काम लेनेका है उसमें ये सहायता करनेवाले नहीं हैं, अपितु नुकशान करनेवाले हैं, और थोड़ा किराया देकर पूरा उपभोग करनेवालेको भी यह लाभदायक नहीं हैं । ऐसे पदार्थों के खानेसे प्रमाद बढ़ता है, और प्रमाद बढ़नेसे शरीर अपना कार्य करनेमें असमर्थ होजाता है तथा ऐसी वस्तुओंके खरीद करने में भी अधिक द्रव्यव्ययकी आवश्यकता होती है, जिससे लाभके बदले हानि अधिक होती है । इसलिये ऐसा काम ही नहीं करना अधिक उत्तम है । शरीरको तो आवश्यकतानुसार उचित सात्त्विक खुराक देकर उससे पूरा पूरा काम लेना, यथाशक्ति तप, दान, दया, क्षमा और परोपकार आदि करना और शरीरप्राप्तिको सफल बनाना उचित है। ॥ इति सविवरण देहममत्वमोचननामा पंचमोऽधिकारा॥ TOMORRIEDJ--
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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