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________________ विचार करने लगा कि यदि दो माशा स्वर्ण मांगूंगा तो उससे केवल नीके लिये कुछ वस ही पायेगें लेकिन सब नहीं आवेगें, अतः हजार मोहरें मांगू ? नहीं, नहीं, उनसे भी सब गहने नहीं बन सकेगें, अतः चलो लाख मोहरें मांगूंगा । इसप्रकार बढ़ते बढ़ते जब मांगने की हद न रही तो फिर विचार किया कि अरे ! दो माशे सोनेके लिये निकले हुए को करोड़ सोने की मोहरों से भी सन्तोष नहीं होता! अतः इस तृष्णा को धिक्कार है ! ऐसे विचारोंसे वहीं केशों का लोचन करडाला । इस दृष्टान्त से केवल यही देखना है कि एक स्त्रीके सम्बन्ध से ही तृष्णा कितनी बढ़ जाती है । इसके लिये ऐलायचीकुमार का चारित्र भी प्रसिद्ध है । स्त्रीमोह से उसको बहुतकुछ सहन करना पड़ा । दुनियाँ में जरासी नजर डालो तो शिघ्र मालूम होगा कि जहाँ स्त्री है वहाँ घर है और जहाँ घर है वहाँ बन्धु । संसार में पड़नेवालों और पड़े हुओं को इसपर बहुत विचार करना योग्य है। इस भव में इतनी अड़चने तथा दुःख उठाने के उपरान्त परभव में भी बहुत दुःख भोगने पड़ते हैं। मोह से मग्न होनेवालों की नरकादि गति में क्या दशा होती है यह सहज ही समझा जा सकता है। स्त्री शरीर में क्या है उसके विचारने की आवश्यक्ता. अंगेषु येषु परिमुह्यति कामिनीनां, चेतः प्रसीद विश च क्षणमंतरेषाम् । सम्यक् समीक्ष्य विरमाशुचिपिंडकेभ्य स्तेभ्यश्च शुच्यशुचिवस्तुविचारमिच्छत् ॥५॥
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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