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________________ १ समतामाप्ति का प्रथम साधन मैत्री, प्रमोद, करुणा और माध्यमध्य ये चार भावना भाना है। ये चारों भावनायें बहुत उपयोगी हैं और जीवों के पारस्परिक सम्बन्ध को बतानेवाली होने से ये हृदय को श्राई करती हैं। इसका विशेष विवेचन प्रन्थ के विवेचन लिखते समय किया गया है वहां से पढ़लेवें। दूसरी बात संसार भावना अथवा भव भावना है जिसके सम्बन्ध में इस प्रन्थ में आगे विवेचन किया जायगा, प्रारम्भ में इन अगत्य की चार भावनाओं पर विशेषतया ध्यान खिचकर सूरिमहाराजने बहुत उपकार किया है । इन चार भावनाओं के भाने से अनेकों जीवों को समता प्राप्त होजाना संदेह रहित बात है। २ समताप्राप्ति का दूसरा साधन इन्द्रियविषयों पर समचित रखना है । सांसारिक सर्व विषयों के साथ इस जीव का किस प्रकार का सम्बन्ध है उसके विचार करने से इस साधन की उपयोगिता अच्छी प्रकार समझ में आजाती है । बाह्य दिखावट से वस्तुओं में फंसकर अनुकूल विषयों में लिप्त होजाने से कर्तव्यविस्मरण होता है; यह अनादि अभ्यासद्वारा वस्तुओं का सहज धर्म होना जान पड़ता है, परन्तु उपरोक्त सहज विचारों से, सूर्य से अंधकार के नाश होजाने समान, अपने आप नाश होकर विवेक दिवस का सुप्रभात सर्वत्र सर्व दिशाओं में प्रकाशित हो जायगा । ३ समता का तीसरा साधन वस्तु स्वभाव देखना है। पौद्गलिक वस्तुओं का जीव के साथ किस प्रकार का सम्बन्ध है इसके विचार करने की अत्यन्त आवश्यकता है। जब तक इसप्रकार का ज्ञान नहीं होजाता तब तक जीव अनेकों भूलें
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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