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________________ गिरते रहते हैं । मनके एक विभाग में अस्पष्टतया नवकार का जाप बराबर जारी रहता है जो बहुधा Mechanical (यंत्रवत् ) होता है, और इसी समय दूसरे विभाग में मन दुनियाँ के कई विभागों में भ्रमण करने को निकल पड़ता है । इसीप्रकार की स्थिति प्रतिक्रमण करते समय भी अनुभव होती है। अभ्यासद्वारा यह स्थिति सुधर सकती है । धीरे २ एक वस्तु में मन को स्थिर कर सकते हैं और इसके प्राप्त होने पर ही कार्यसिद्धि होती है । मन की एकाग्रता प्राप्त करने में यमनियमादि की बहुत आवश्यकता होती है । जिस समता साधन का इस ग्रन्थ में वर्णन किया गया है वह बहुधा योग का विषय है और उसके लिये एक अलग ही लेख लिखने की आवश्यकता होती है। यहाँ केवल इतना ही कहना है कि स्थिरता प्राप्त करने से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं और वे ही समता हैं । समता के ऐसे विशाल अर्थ की और ध्यान आकर्षण करने के पश्चात् ग्रन्थकार समता को मोक्ष का अंग होना सिद्ध करता है । समता रहित अनुष्ठान लगभग फल रहित होते हैं ऐसा हमने उत्कृष्ट फल के अपेक्षा में देख ही लिया है जिससे यह विभाग तो स्वतः सिद्ध होजाता है, अतः अब ग्रन्थकार इस विषय पर विशेष विवेचन न कर समताप्राप्ति के साधनों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है । यह विषय चार भागों में विभक्त किया जासकता है । साधन अनेक प्रकार के हैं और उनका सम्पूर्ण प्रन्थ में अनेक प्रकार से वर्णन किया गया है। प्रत्येक व्यक्ति को उसके लिये कौनसा साधन अनुकूल होगा उसे वह अपने आप अपनेतई विचार ले । इस अधिकार में समताप्राप्ति के मूल्य चार साधन बताये गये हैं।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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