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________________ करता रहता है । जो वस्तु कभी अपनी नहीं हो सकती उसको अपनी मानता है, उस पर प्रेम करता है, उसके संयोग से आनंदित होता है, उसकी प्राप्ति के प्रयास में शक्ति का उपयोग करता है और उसके वियोग से दुःखी होता है । सगे सम्बन्धी, पुत्र, खी आदि का सम्बन्ध भी यहां विचारे योग्य है और इसीप्रकार प्रत्येक वस्तु का सम्बन्ध भी अवलोकन करने योग्य है । इस सम्बन्ध की स्थिति और सुख देने की अल्पता अथवा प्रभाव को ध्यान में रखते हुए उस सुख में मस्त न होकर 'स्व' क्या है इसको विचारना तथा जानना समताप्राप्ति का रामबाण • उपाय है । इस विषय के साथ साथ अनेक प्रकार की आत्मशिक्षा भी दीगई हैं। ४ समताप्राप्ति का चोथा साधन स्वार्थ प्राप्त करने में रक्त रहना है । यह जीव जब तक वस्तुओं की वास्तविक स्थिति को नहीं जानता तब तक व्यर्थ प्रयास कर के सुख नहीं है वहां से सुख मिलने का प्रयास करता है; जिसके लिये शास्त्रकार सब प्राप्त हुए अथवा होनेवाले पदार्थों को स्वप्न अथवा इन्द्रजाल में प्राप्त हुए पदार्थों से उपमा देते हुए इस समानता को मिटाकर स्वार्थसाधन करने निमित्त प्रेरणा करता है। स्नेही वर्ग में फंस कर उनके लिये जो महाप्रयास किया जाता है उसका कुछ भी फल नहीं मिल सकता है, कारण कि सब प्रयास धनप्राप्ति के लिये किया जाता है, और यह प्रवृति सदैव निर्हेतुक और खोटी है; जिससे इस जीव को किसी भी प्रकार का लाभ नहीं हो सकता वरन् जब यह जीव संसारावटी में भूलकर भ्रमण करता है तब उसको मार्ग बताने के लिये तथा महाभयंकर जानवरों से उसकी रक्षा करने के लिये भी उसके स्नेही
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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