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________________ ११३ दाग लगा हुआ होगा, तो भावना मूर्ति उसमें स्थिर नहीं हो सकेगी, और इसी लिये आनन्दघनजी महाराजश्री सम्भवना. थजी के स्तवन में कहते हैं कि " सेवन कारण पहले भूमिका रे अभंग अद्वेष अखेद " प्रथम भूमिका अर्थात् हृदय को इसप्रकार की मलीन वासनाओं से मुक्त करना और ऐसा करने का प्रबल साधन समता है । समता से जब यथास्थित वस्तुस्वरूप का बोध होजाता है तब मलीन वस्तुओं तथा मलीन भावों का परभावपन जाना जाता है और तदनुसार जब उनके त्याग करने की-उनको फेंक देने की इच्छा होती है तब भूमिका शुद्ध होजाती है और भावनामूर्ति स्थापित होजाती है। शुद्ध प्रकाश पड़ने योग्य भूमिका होजाने पर उसपर शुद्ध प्रतिबिम्ब की छाया पड़नेपर वह स्वयं प्रकाशवान होकर कार्य सन्मुखता प्राप्त कराती है। अतः समता जैसे प्रबल साधन के उपयोगद्वारा भूमिका में से जो कचरा हो उसको निकाल फेंकना चाहिये । ___ समता अर्थात् 'स्थिरता ' हम प्राकृत पुरुषों के मन कितने अधिक अस्थिर-चंचल होते हैं इसका शिघ्र भान करानेवाली है । नवकारवाली गिनने के आरम्भ में एकाध नवकार तो जरुर ध्यानपूर्वक बोल लिया जाता है । पश्चात् मन के दो विभाग होजाते हैं । मन की विचित्र गति होजाती है । हाथ अपना कार्य करता रहता है अर्थात् मनके एक के पश्चात् बराबर एक १ उपयोग समयांतर होने से पलटते रहते हैं, जिनका हम को भान नहीं है. इसलिये ऐसा प्रतीत होता है। वस्तुतः दो विभाग नहीं हो सकते हैं, परन्तु उपयोग बदलते रहते हैं । क्रिया के तो विभाग हो सकते हैं । इस द्रव्यानुयोग के साथ मन के बंधारण का गहन विषय है, इसलिये यहां उसकी चर्चा नहीं की गई है।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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