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________________ नार प्राणियों के दुःख दूर करने की जो बुद्धि है वह करुणाभावना कहलाती है।" __अनुष्टुम् विवेचन-संसार के अनेक जीव लक्ष्मी उपार्जन निमित्त जंगल-जंगल अथवा देश-विदेश घुमते हैं, दूसरों की सेवा करते हैं, अनेक कष्टों को सहन करते हैं तब लक्ष्मी को प्राप्त करते है। परन्तु फिर उसका दुरुपयोग कर के हैरान होते हैं। लक्ष्मी प्राप्त करते समय अनेक कष्ट उठाते हैं, उसके रक्षण करने में उससे भी अधिक कष्ट उठाते हैं । भय के मारे उस की चौकी किया करते हैं, उसके खर्च होने पर भी अनेकों प्रकार दुःखी होते हैं, उड़ाउ पुरुष मौजशोक से शरीर बिगाड़ता है, कंजूस पुरुष जल जल कर मन तथा मस्तिष्क को खाली करता है और अतिविषयी पुरुष व्याधियों का शिकार बनता है । लक्ष्मी के दुश्मन-चोर तो सदैव तैयार रहते हैं। मनुष्य के शिरपर रोग, भय, मृत्यु, वृद्धावस्था आदि शत्रु तो सदैव बने ही रहते हैं और वे उस को दुःख देते रहते हैं। इतिहास में भूमि के लिये अनेकों राजाओं को लड़ाई लड़ते और हजारों की सैनाओं का खून बहाते हुए पढ़ने में पाता है । मत्सरता से मुक्दमें लड़ कर हजारों लाखों का खर्चा उठानेवाले तथा पैसों का नाश करनेवाले सुने गये हैं। लोभ से अनेक प्रकार के अप्रमाणिक आचरण और हल्के प्रकार के दावें करनेवाले देखे गये हैं। कितने ही प्राणी पंचेन्द्रिय विषय भोगने में तल्लीन होकर संसार में लिप्त रहते हैं। कितने ही प्राणी महापापात्मक एवं अधोगति में लेजानेवाले कार्य कर के उनके विषय में विचार करनेवाले तक को महाक्लेश का पात्र बनाते हुए देखे गये हैं-इस प्रकार सम्पूर्ण संसार दुःखमय
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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