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________________ औषधि से निरोग बनाने की अभिलाषा यह (तीसरी) कपा भावना; न छूट सके ऐसे दोषवाले प्राणी पर उदासीन भाव यह ( चोथी) माध्यस्थ्य भावना." उपजाति. उक्त चार भावनाओं का हरिभद्रसूरिकृत षोडश कानुसार स्वरूप. परहितचिंता मैत्री, परदुःखविनाशिनी तथा करुणा । परसुखतुष्टिर्मुदिता, परदोषोपेक्षणमुपेक्षा ॥ १२ ॥ ____" (आत्मव्यतिरिक्त ) दूसरे प्राणियों का हित विचारना यह मैत्री भावना; दूसरों के दुःखों को नाश करने की इच्छा अथवा चिंता से करुणा भावना; दूसरे के सुख को देख कर आनन्द मानना यह प्रमोद भावना और दूसरों के दोषों की उपेक्षा करना यह उपेक्षा भावना" आर्यावृत्त. अब प्रत्येक भावना का स्वरूप कलिकालसर्वज्ञ श्रीमद् हेमचन्द्राचार्यकृत श्री योगशास्त्रानुसार बताया जाता है। प्रसंगवश अन्य प्रन्थों से भी इस भावना का स्वरूप विशेषतया स्पष्ट करने का प्रयास भी विवेचन में किया गया है। प्रथम मैत्रीभावना का स्वरूप. . मा कार्षात्कोऽपि पापानि, माचाभूत्कोऽपि दुःखितः। १ सामान्यतः उपजाति के प्रत्येक चरण में ११ अक्षर होते हैं । इन्द्रवन उपेन्द्रवज्र इन दोनों के साथ मिलने से उपजाति छंद कहलाता है ।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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