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________________ १ जिसके अपना पराया कोई नहीं, जिसके पुत्र तथा अन्य एक समान है वह ही योगी है । जिस को पांच इन्द्रियविषयों में आसक्ति नहीं, जिस को बिलकुल अभिमान नहीं, कषायों के अंश का जिस जीव में आविर्भाव नहीं होता, विकथा का नाम जिसके पास सुनाई नहीं देता और जो सदैव धर्म जाग्रत अवस्था में रहता है - ऐसा पुरुष परम योगी है । सारांश में कहा जाय तो जो महात्मा सर्वथा व्यवहार में माने हुए कार्यों से दूर रह कर अपना क्या है उस को जानते हैं और जान कर ही नहीं बैठ रहते किन्तु उसको कार्यरूप में लाते हैं वही शुद्ध योगी हैं । उनकी काया की प्रवृत्ति वचनों का उच्च और मन के विचार निरन्तर शुद्ध होते हैं तथा जरुरत पड़ने पर ही काम में आनेवाले और अतिशय स्थिर ऐसे महात्माओं जैसे बनने की इच्छा रखना सर्व का दृष्टिबिन्दु होना चाहिये । परम योगी आनन्दघनजी महाराजने शांति के स्वरूप बताते समय शान्त जीव के अनेक प्रकार के लक्षण बताये हैं उन में से निम्नलिखित लक्षण यहां अधिक उपयुक्त है । . होते हैं । मुमुक्षुओं मान अपमान चित्त सम गणे, सम गणे कनक पाषाण रे । वंदक निंदक सम गणे, ऐसा होय तूं जाण रे || शांति० ॥ सर्व जगजंतुने समगणे, सम गणे तृण मणि भाव रे । । मुक्ति संसार बहु सम गणे, मुणे भवजलनिधि नाव रे || शांति० ॥
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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