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________________ वालीके वर्तमान. हुश्रा उस समय स्वर्णमुद्रिका, रूपैये, और श्रीफलादि से ज्ञान पूजा हुई; और ज्ञानमें आवंद भी अच्छी हुई। (६) माघ शुक्ल पूर्णिमा के दिन श्रोसवंश स्थापक श्राचार्य श्री रत्नप्रभसूरिजी महाराज की जयन्ति होनेसे पब्लिक सभा, पूजा प्रभावना, और वरघोडा बडे समारोह के साथ निकला था। (७) वाली में मुस्लमानों के सांई ( काटिया ) के वहां का दूध प्राय: सब गांववाले मूल्य देकर लाते थे, और खाते पीते थे, यह कतई बन्दकर दिया गया है । इतना ही नहीं परन्तु किसनलाल हलवाईने भी मुस्लमानों का दूध नहीं लाने की प्रतिज्ञा कर ली है। (८) रेस्मी कपडे जो असंख्य कीडों से बनते हैं, उन को पहिनना लोगोंने बंद कर दिया । इनके सिवाय और भी बहुत सी बातों का सुधारा हुआ है, अब इन को वाली की जैन जनता कहां तक पालन करेगी; यह हम निश्चय रूपसे नहीं कह सक्ते । श्रापश्री के विराजने के दरम्यान होली का आगमन हुआ, इस अवसरपर आपश्रीने फरमाया कि छः सास्वती अठ्ठाइयों में फाल्गुण अट्ठाई भी एक है, जो फाल्गुण सुद ८ से पूर्णिमा तक रहती है । अगर इस अट्ठाई का अच्छा महोत्सव किया जाय तो होली जैसे मिथ्या पर्व में अनेक जीव कर्मबन्ध करते हैं वह सहज ही में रुक जावे । इस बात का बीडा भभूतमल रायचंदजीने उठाया कि मैं इस बात की दलाली करूंगा, बाद जैसा उसने कहा था वैसा ही करके
SR No.022036
Book TitleSamavsaran Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Muni
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1929
Total Pages46
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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