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________________ समवसरण. हमारी मरूभूमि के ही हैं, दूसरे हमारे आचार व्यवहार, रहन सहन, और कुप्रथा-कुरूढियोंसे श्राप पूर्णतया परिचित है। तीसरा जनता के चिरकाल का रोग मिटाने के लिए मधुर, और कटूक औषधियों भी आप के पास कम नही है; और उनको अनुपान के साथ देने की तजवीज भी आप भली भान्ति जानते हैं। अतएव श्राप श्री के उपदेशरूपी दवा भव्यात्माओं रूपी मीरजों को इतनी शीघ्र असर करती है कि वाली में आप का कोई भी उपदेश निष्फल नहीं गया है थोडे बहुत प्रमाण में जनतापर जरूर असर हुआ है । जैसे: (१) महाजनों के घरों में पाणी के वर्तनोपर सरवे न होनेसे झूठे पाणी और असंख्य प्राणियों के पाप में डूबते हुओं को विमुक्तकर दिए, अर्थात् गांव के लोगोंने सरवे करवा लिए। (२) मृत्यु के पीछे किए हुए जिमणवारों (औसरों ) में जीमने का भी बहुत लोगोंने परित्याग किया है। (३) गोडवाड की औरतों व लडकियों गोबर लाने को जाने में अपना बड़ा भारी गौरव समझती है पर आपश्री के उपदेशने तो उनको भी बन्द करवा दिया। (४) लग्न प्रसंग में महाजनों की बहन बेटियों मैदानमें ढोलपर नाचती है और ऐसे प्रसंगपर असभ्य गालियों गाया करती है उसका भी बहुत सी बहनोंने प्रत्याख्यान किया है । . (५) व्याख्यानमें श्री रायप्पसेनीजी सूत्र वंचना प्रारंभ
SR No.022036
Book TitleSamavsaran Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Muni
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1929
Total Pages46
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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