SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऋणादानप्रकरणम् कस्यचिदाधिं रक्षेत्तदानेकधा मिषं देयं इत्यर्थायत्तमोचनकाले मूलद्रव्यं दत्वा गवाद्याधिं मोचयेत् तदा तद्वृद्धिं मिषतया देयात् स्त्रीसन्ततिवृद्धौ तु पुत्रं देयात् न कन्यां मूल्यं दत्वा मोचयेत् स्त्रियं कायेन धनोऽनुचर्या कृत्वा स्वात्मानं मिषदानतो मोचयेत् । सुवर्ण आदि आधि पर दोगुना, तीनगुना, चारगुना ब्याज देना चाहिए। धनी द्वारा सम्पूर्ण धन का यत्नपूर्वक रक्षण करना चाहिए। गाय, भैंस आदि अथवा स् को पालने में असमर्थ होते हुए किसी आधि की रक्षा करे तब अनेक गुना ब्याज देना चाहिए। जो स्थापना मुक्त कराते समय मूल धन देकर गाय आदि की स्थापना मुक्त करावे तो ब्याज के रूप में यह वृद्धि दे । स्त्री की सन्तति के सम्बन्ध में वृद्धि के रूप में पुत्र देना चाहिए कन्या नहीं । मूल्य देकर स्त्री को मुक्त कराना चाहिए। शरीर से धनी की सेवा कर ब्याज देकर स्वयं को मुक्त कराना चाहिए। नन्वाधिद्रव्यं चौरैर्हतं चेद्भूपो निश्चित्य चौरेभ्यस्तद्धनं दापयेत् । यदि आधि द्रव्य चोरों द्वारा चुरा लिया गया है तो राजा निश्चय कर चोरों से वह धन दिलाये। यद्यशक्तस्तदा स्वकोषाद्दापयेत् यदि राजा चोरों से धन दिलाने में असमर्थ है तो अपने कोष से दिलवाये प्रत्याहर्त्तुमशक्तश्चेच्चौराद्भूपो हि यद्धनम्। स्वकोषात्तन्मितं द्रव्यं युक्तं दातुं च ऋक्थिनः ॥२०॥ — ६५ यदि राजा चुराया गया धन चोर से वापस लेने में असमर्थ हो जाये तो उसके बराबर धन अपने कोष से ऋण लेने वाले को देना उचित है। ( वृ०) प्रीतिदत्तर्णस्य वृद्धिर्न भवति इत्याह परस्पर सुहृत् सम्बन्धों में प्रदत्त ऋण की वृद्धि न हो, इसका कथनप्रीत्या दत्तं तु यद्द्रव्यं वर्द्धते नैव तत्कदा । याचिते वर्द्धते दत्तं प्रतिमासं मिषक्रमात्॥२१॥ - प्रीति वश दिये गये धन पर कभी ब्याज नहीं होता, लेकिन यदि धन माँगने पर दिया गया है तो प्रत्येक माह ब्याज के क्रम से धन में वृद्धि होती है। (वृ०) पितृऋणम् पुत्रैर्देयमिति नियततया क्लीबत्वादिदोषयुक्तानामपि ऋणदातृत्वप्रसङ्गे तद्वारणायाह पिता का ऋण पुत्र को देना चाहिए - यह नियम होने से नपुंसक आदि दोष से युक्त पुत्रों के ऋण देने के प्रसङ्ग 'उनका निवारण करने हेतु कहा --
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy