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________________ व्यवहारविधिप्रकरणम् ४३ यथा अनेन मत्त एतावद्रजतानि एतन्मिषेण तुर्यमासनियमतया गृहीतानि। अद्य नियतकालव्यतिक्रमे मया अधमर्णो याचितोऽपि न ददाति। प्रत्युतो योद्धं प्रवृत्त इति। उदाहरणस्वरूप, अमुक ने मुझसे इतने रुपये इस ब्याज से चार मास में वापस करने का नियम कर लिया था। वह अवधि व्यतीत हो जाने पर मैंने कर्जदार से यह राशि माँगी थी परन्तु वह वापस न कर प्रत्युत् लड़ाई करने के लिए तैयार इति विज्ञप्तिं श्रुत्वा निर्णीय मद्रव्यं मामधनर्णिकाटापयितव्यमिति प्रतिज्ञा।१। यह विज्ञप्ति सुनकर निर्णयकर मेरा धन उस कर्जदार के पास से दिलवाना चाहिए- यह प्रतिज्ञा है। ___अर्युक्तपक्षसाधनबाधकरूपं यत्प्रत्यर्थिनोक्तं तदुत्तरम्।। वादी द्वारा कथित पक्ष के साधन को बाधित-खण्डित करने वाले प्रतिवादी का कथन उत्तर है। द्वयोरुक्तिं श्रुत्वा प्राड्विवाकस्य चित्तं दोलायते इदं साधनं सत्यं वेदमिति संशयः एकस्मिन् धर्मिणि विरुद्धनानाधर्मविशिष्टज्ञानं वा संशयः।३। दोनों (वादी और प्रतिवादी) का कथन सुनकर न्यायाधीश का चित्त दोलायमान - अनिर्णय की स्थिति में हो जाता है। वादी का साधन (रूप वचन) सत्य है अथवा प्रतिवादी का निषेधरूप वचन (मन की यह दुविधा) संशय है। एक वस्तु में विरुद्ध विविध गुण विषयक ज्ञान संशयः है। __ अर्थिप्रत्यर्थिनियुक्तसाधनदूषणसमर्थनकारणं हेतुः।४। वादी और प्रतिवादी के द्वारा (क्रमशः) साधन और दूषण के समर्थन में प्रयुक्त कारण हेतु है। हेतुद्वयमध्ये कः कस्य साधक इति विचारः परामर्शः।५। दोनों हेतुओं के मध्य में कौन किसका साधक है यह विचार परामर्श है। साक्ष्यादिभिर्यस्य वाक्यस्य बलप्रतीतिः तत् प्रमाणम्।६। साक्षी, (लेख) इत्यादि के द्वारा जिस वाक्य की बल प्रतीति हो वह प्रमाण है। भूपोमन्त्रिसभ्यैश्च सह सर्वमाद्यन्तलेख्यादीन् वाचयित्वा श्रुत्वा वोभयोर्जयपराजयसाधकनिदानज्ञानोत्तरं सर्वानुमत्या चाज्ञां देयादितिनिर्णयः।७।
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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