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________________ ४२ लघ्वर्हन्नीति १. ऋणादान - ऋण-ग्रहण, २. सम्भूयोत्थान - सामुदायिक कृत्य, ३. देय विधि, ४. दाय भाग, ५. सीमा विवाद, ६. वतेनादान - वेतन-ग्रहण, ७. क्रयेतरानुसन्ताप - क्रय-विक्रय विवाद, ८. स्वामि-भृत्य विवाद, ९. प्राप्त वित्त का निक्षेप, १०. अस्वामि विक्रय - स्वामी के बिना वस्तु का विक्रय, ११. वाक्पारुष्य - वाणी में कर्कशता, १२. मर्यादाव्यतिक्रम, १३. परस्त्री-ग्रहण, १४. द्यूत-विवाद, १५. चोरी विवाद, १६. साहस, १७. दण्ड पारुष्य और १८ स्त्री-पुरुषधर्म - इस प्रकार व्यवहार मार्ग के अठारह भेद बताये गये हैं - (वृ०) ऋणग्रहणं ऋणादानं १ बहुभिर्मिलित्वा कृत्यापादनं २ दातुं योग्यस्य-विधिः ३ दायभागः ४ सीमायाः विवादः ५ वेतनादानं ६ क्रयविक्रयपश्चात्तापः ७ स्वामिभृत्ययोर्विवादः ८ प्राप्तवस्तुनः उत्तमे पुरुषे स्थापनं निक्षेपः ९ स्वामिनं विना तद्वस्तुविक्रयः १० वाक्पारुष्यं ११ मर्यादाव्यतिक्रमः १२ परस्त्रीग्रहणं १३ द्यूताभियोगः १४ स्तैन्यवादः १५ साहसपारुष्यं १६ दण्डपारुष्यं १७ स्त्रीपुरुषधर्मः १८ इति अष्टादश भेदा अस्मिन्व्यवहारमार्गे स्मृताः। १. ऋणादान अर्थात् ऋणग्रहण, २. अनेक व्यक्तियों द्वारा मिलकर कार्य करना सम्भूयोत्थान, ३. देने योग्य विधि देयविधि, ४. दायभाग, ५. सीमा-विवाद, ६. वेतनादान, ७. क्रय-विक्रय पश्चात्ताप, ८. स्वामि- भृत्यविवाद, ९. प्राप्त वस्तु का उत्तम पुरुष में स्थापन निक्षेप, १०. स्वामी के विना उसकी वस्तु का विक्रय, ११. वाक्पारुष्य, १२. मर्यादा-व्यतिक्रम, १३. परस्त्रीग्रहण, १४. द्यूताभियोग, १५. स्तैन्यवाद, १६. साहसपारुष्य, १७. दण्डपारुष्य और स्त्री-पुरुष धर्म - ये अठारह भेद इस व्यवहार मार्ग में कहे गये हैं। एवमन्येपि भेदाः स्युः शतमष्टोत्तरं पुनः। क्रियाभेदान्मनुष्याणां बहुशाखो भवेत् धुवम्॥९॥ इस प्रकार (व्यवहार के) दूसरे भी एक सौ आठ भेद हैं। मनुष्यों की (अलग-अलग) क्रियाओं के भेद से निश्चय ही (व्यवहार के) अनेक भेद होते हैं। (वृ०) यथा बहुवादिनां बहूनां बहुप्रतिवादिभिर्विरोधः १, बहूनामेकेन सह विरोधः २, एकस्य बहुभिर्विरोधः ३, एकस्यैकेन सह विरोधः ४, एवमष्टादशानां चतुर्भिगुणने द्विसप्ततिभेदाः भवन्ति। जैसे कई वादियों का कई प्रतिवादियों के साथ विरोध, बहुत से वादियों का एक प्रतिवादी के साथ विरोध, एक वादी के साथ बहुत से प्रतिवादियों का विरोध, एक वादी के साथ एक प्रतिवादी का विरोध, इस प्रकार अठारह भेदों के साथ चार का गुणा करने से व्यवहार मार्ग के बहत्तर भेद होते हैं।
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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