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________________ ४४ लघ्वर्हन्नीति मन्त्री तथा सभासदों के साथ आदि से अन्त तक सभी लेखों को पढ़कर, साक्षियों को सुनकर सबकी सहमति से राजा जो आज्ञा दे वह निर्णय है। पुनस्तदनुसारेणाधिकार्युभयोराज्ञां श्रावयित्वा तत्प्रवृत्तिकरणं प्रयोजनम्।८। पुनः निर्णय के अनुसार न्यायाधीश द्वारा दोनों (वादी और प्रतिवादी) को आज्ञा सुनाकर उसे क्रियान्वित करना प्रयोजन है। इत्यष्टप्रकारैर्वादनिर्णयः कार्यः, तत्र कथं व्यवहारो विधेयः, इत्याह - इस प्रकार उपरोक्त आठ प्रकार से वाद का निर्णय करना चाहिए। वाद के समय किस प्रकार व्यवहार का सञ्चालन करना चाहिए, इसका कथन - भूपः सदसि संवेगभावमाश्रित्य निस्पृहः। राज्यकार्यं करोत्येव गृहीत्वा सभ्यसंमतिम्॥१०॥ समदः प्रेक्षमाणोऽसौ नोक्तिं कस्यापि मानयेत्। राज्यकृत्ये यथानीति यदीप्सुः सुखमक्षयम्॥११॥ राजा सभा में प्रचण्ड भाव का आश्रय लेकर इच्छारहित होकर सभासदों की सम्मति लेकर ही राज्य-कार्य करता है। यदि राजा को अक्षय सुख की इच्छा हो तो वह सगर्व देखता हुआ नीतिपूर्वक राज्य कार्य में किसी के कथन को स्वीकार न करे (किसी से प्रभावित न हो। (वृ०) एवं भूपे राज्यकर्मणि प्रवृत्ते कस्मिंश्चित् अर्थिन्यागते चरस्तस्माद्विज्ञप्तिपत्रं गृहीत्वा मन्त्रिणं देयात्। मन्त्री च तत्पत्रं भूपं निवेद्य श्रव्येतरनिर्णयानन्तरं पत्रोपरि चाज्ञां लिखेत्। राजा के राज्यकार्य में प्रवृत्त होने पर वादी के आवेदन हेतु आने पर दूत आवेदन पत्र लेकर मन्त्री को सौंपे। मन्त्री उस आवेदन पत्र को राजा को सूचितकर कि यह सुनने योग्य है कि नहीं, इस निर्णय के बाद, पत्र पर आज्ञा लिखे। (वृ०) का तत्रयोग्यतायोग्यता वेत्याहआवेदन की योग्यता अथवा अयोग्यता के विषय में कथन - सार्थकं च समग्रार्थं साध्यधर्मेण संयुतम्। स्फुटं संक्षिप्तसच्छद्वमात्मप्रत्यर्थिनामयुक्॥१२॥ साध्यप्रमाणसंख्यावद्देशभूपाभिधान्वितम् । यन्निवेदयते राज्ञे तद्योग्यमिति कथ्यते ॥१३॥ राजा को प्रस्तुत आवेदन यदि उद्देश्यपूर्ण, समस्त दावों से युक्त, समाधान
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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