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________________ युद्धनीतिप्रकरणम् जयवादित्रनिर्घोषबधिरी' कृतदिग्मुखः मङ्गलाचारनिरतो हर्षेण स्वपुरीं व्रजेत् ॥७२॥ इत्येवं वर्णिता चात्र युद्धनीतिः समासतः । विशेषस्तु महाशास्त्रात् ज्ञेयः सद्बुद्धिसागरैः ॥ ७३ ॥ १. २. विजय प्राप्त होने पर राजा सैनिकों को अत्यधिक मात्रा में धन प्रदान करे । इसके अतिरिक्त युद्ध के समय अन्न, बकरी, गाय, भैंस आदि जिसको प्राप्त हो उसको मिले। योद्धाओं के द्वारा युद्ध में अपने पराक्रम से प्राप्त रथ, घोड़े, हाथी, बहुमूल्य रत्न, बर्तन, पशु और स्त्रियों को राजा को अर्पित कर देना चाहिये। इस प्रकार ऊपर वर्णित विधि से विजय प्राप्त कर अत्यन्त विशाल कीर्ति से सम्पूर्ण पृथ्वीमण्डल को पूर्ण करने वाला राजा पृथ्वी पर प्रसिद्ध हो जाता है। विजय वाद्य की ध्वनि से सभी दिशाओं के मुख को बधिर बनाने वाले, मङ्गलाचार में संलग्न हर्षपूर्वक अपनी नगरी की ओर प्रस्थान करे । इस प्रकार युद्धनीति का संक्षेप में वर्णन किया गया सद्बुद्धि के सागर अर्थात् बुद्धिमान जनों को विशेष रूप से महा शास्त्र से जानना चाहिये । ॥ इति युद्धनीतिप्रकरणम्॥ वधरी भ १, बधरी भ २, प २ ॥ पुरा भ १, भ २, प ३ ॥ ३१ ·0
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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